ये पांच अजीब बातें फिर सोचने पर करती हैं मजबूर
नई दिल्ली। कहानी में बदलाव व ट्विस्ट रोमांचित करते हैं लेकिन जब हर अगले मिनट कहानी भटकने लगे तो वो बॉक्स ऑफिस की उस फ्लॉप फिल्म की तरह बन जाती है जिसे एक सुपरस्टार भी नहीं बचा पाता। भारतीय क्रिकेट में भी आजकल ट्विस्ट खत्म नहीं हो रहे। यहां मामला कब विराट रूप ले लेता है पता ही नहीं चलता। कई देश क्रिकेट खेलते हैं लेकिन आपने कितनी बार उन देशों में कोच के चयन को लेकर इतना बवाल मचते देखा? आपके सामने रखते हैं वो 5 अजीब बातें जो पिछले कुछ समय में सामने आईं लेकिन ज्यादातर लोगों ने इसे अनदेखा कर दिया है, आने वाले समय में इनका गहरा प्रभाव हो सकता है।
1. अचानक कैसे मान गए दादा?
अभी एक साल पुरानी ही बात है जब सौरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर और वीवीएस लक्ष्मण की सदस्यता वाली बीसीसीआइ की सलाहकार समिति पहली बार कोच चुनने बैठी थी। टीम के निदेशक रहने वाले रवि शास्त्री ने भी उस समय आवेदन किया था लेकिन मुहर कुंबले के नाम पर लगी थी। इसके बाद शुरू हुआ गांगुली और शास्त्री के बीच एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का सिलसिला। आमतौर पर शांत रहने वाले शास्त्री ने सलाहकार समिति में गांगुली की मनमानी पर अलग-अलग तरह से सवाल उठाए लेकिन वो ये भूल गए कि वो सचिन या लक्ष्मण जैसे शांत रहने वाले खिलाड़ियों से नहीं बल्कि भारतीय क्रिकेट के सबसे आक्रामक पूर्व कप्तान से भिड़ रहे थे। दोनों तरफ से खूब कीचड़ उछाला गया। एक साल बीता, कुंबले का इस्तीफा हुआ और नए कोच के चयन से पहले दादा का बयान आया कि कप्तान कोहली से बातचीत के बाद ही फैसला होगा। क्या गांगुली ने ये बात पिछले साल नहीं सोची थी, उस दौरान उन्हें कप्तान का ख्याल नहीं आया था? अपने कप्तानी के दिनों में वो खुद भी कोच (चैपल) चुनने में बड़ी भूमिका निभा चुके थे, जब उनको मानना ही था तो पिछली बार कोच चुनने में इतनी बड़े बवाल को रास्ता क्यों दिया?
2. ..और कितने कोच चाहिए टीम इंडिया को, अब तक 5
न जाने कोच के चयन को लेकर इतनी माथापच्ची क्यों की गई जब आपको पिछली बार के टीम निदेशक को ही कोच बनाना था? चलो इस सवाल को छोड़ देते हैं क्योंकि इस बीच विराट-कुंबले को लेकर काफी विवाद हुए थे और नया कोच तय करना ही था लेकिन यहां भी एक ट्विस्ट आया। रवि शास्त्री को मुख्य कोच बनाया गया तो साथ में जहीर खान को बॉलिंग सलाहकार और विदेश दौरों के लिए द्रविड़ को बैटिंग सलाहकार तय कर दिया गया। आपको बता दें कि बल्लेबाजी कोच के रूप में संजय बांगड़ और गेंदबाजी कोच के रूप में भरत अरुण पहले से ही शामिल हैं। अगर जहीर और द्रविड़ को शामिल करना ही था तो शास्त्री को पहले की तरह टीम निदेशक ही रहने देते। शास्त्री तो खुद भी कह चुके हैं कि क्रिकेट के शीर्ष स्तर खिलाड़ियों को सिखाने नहीं बल्कि सिर्फ राह दिखाने की जरूरत होती है। वरिष्ठ खेल पत्रकार व लेखक मनोज जोशी कहते हैं, ‘कोच और निदेशक के पद में आखिर फर्क क्या है। शास्त्री जब निदेशक थे तब भी खिलाड़ियों को सिखाते थे और अब जब कोच होंगे तब भी वही काम करेंगे और अब जब आपके पास दो विशेषज्ञ कोच और जहीर-द्रविड़ के रूप में दो दिग्गज भी सिखाने के लिए मौजूद होंगे तो भला ‘शास्त्री- द कोच’ की मौजूदगी क्या नया बदलाव ले आएगी?’ क्या ये फैसला सिर्फ और सिर्फ कप्तान कोहली को संतुष्ट करने के लिए था?
3. क्या आवेदन सिर्फ दिखावा है
बीसीसीआइ ने कुछ समय पहले जब कोच के पद के लिए आवेदन मांगे थे तो ये दुनिया भर के दिग्गजों को न्योता था। हमेशा की तरह कई देशों के दिग्गजों ने आवेदन किया लेकिन उनके नामों की तो कहीं चर्चा भी नहीं हुई। अपने अंदर के झगड़े से निपटते तब जाकर उन पर ध्यान जाता। कुंबले-विराट का झगड़ा, कुंबले का इस्तीफा, सहवाग के आवेदन की रहस्यमयी एंट्री, अंतिम समय पर शास्त्री का नाम उछलना, पहले शास्त्री के नाम का एलान होना, फिर बीसीसीआइ द्वारा इस खबर को गलत बताना और फिर उसी दिन अचानक शास्त्री की ताजपोशी होना..ये सब कुछ होता रहा और बेचारे विदेशी आवेदनकर्ता बाहर बैठकर बस देखते रहे। दरअसल, इन्हीं में एक नाम पूर्व ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज टॉम मूडी का भी था जो कि तीसरी बार भारतीय कोच पद के लिए कतार में खड़े थे। अगर बोर्ड ने तय कर लिया है कि कोच विराट की पसंद का ही होगा तो इन लोगों को कतार में खड़ा रखने का क्या मतलब बनता है?
4. अब क्रिकेट नहीं राजनीति की है बारी, ये है वजह !
अगर शास्त्री के कोच चुने जाने का ये आधार है कि ‘कप्तान साहब’ के साथ उनका तालमेल अच्छा है तो फिर कभी इस बात पर चर्चा क्यों नहीं हुई कि आखिर द्रविड़-जहीर का शास्त्री के साथ तालमेल कैसा है? आखिर इन्हें भी तो मिलकर ही काम करना होगा न..जहीर और द्रविड़, दोनों ने ही शास्त्री के साथ क्रिकेट नहीं खेला है। इसी पद पर अगर सहवाग होते तो शायद इस तिकड़ी के तालमेल की बात कही जा सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब राजनीति का एक और दरवाजा खुल गया है। बताया जा रहा है कि शास्त्री ने आते ही अपनी डिमांड रखी है कि भरत अरुण ही गेंदबाजी कोच रहें और जहीर सिर्फ सलाहकार की भूमिका निभाएं। इसे अंदरुनी राजनीति की पहली झलक के रूप में देख सकते हैं। कयास यही लगाए जा रहे हैं कि गांगुली अब भी अंदर ही अंदर शास्त्री के पक्ष में नहीं हैं और अब उनके दो करीबी यानी जहीर और द्रविड़ टीम मैनेजमेंट में मौजूद रहेंगे। शास्त्री का एक गलत कदम या टीम इंडिया का थोड़ा सा खराब प्रदर्शन भी दादा को शास्त्री पर अपनी बात बोलने का अवसर दे सकता है। उम्मीद यही करते हैं कि कहीं ये राजनीति, खेल को खिलवाड़ न बना दे।
5. खेल में कैसे शुरू हो गई आजादी और अनुशासन की टक्कर?
किसी भी चीज को हासिल करने के लिए अनुशासन की जरूरत होती है। खेल जगत में अगर लंबे समय तक टिकना है तो अनुशासन इसकी सबसे पहली कड़ी मानी जाती है। सचिन, द्रविड़, गावस्कर, कपिल देव जैसे तमाम दिग्गज भारतीय क्रिकेटरों ने अपने अनुशासित अंदाज से एक विशाल करियर खड़ा किया और आगे भी सबको अनुशासित रहने की सलाह भी दी। आज स्थिति अचानक काफी बदल सी गई है। टीम के एक कोच (कुंबले) को इसलिए जाना पड़ता है क्योंकि वो कुछ ज्यादा ही अनुशासित था और उसकी छवि एक हेडमास्टर जैसी हो गई थी। वहीं, दूसरी तरफ एक ऐसे दिग्गज की दोबारा एंट्री हुई है जो मानता है कि क्रिकेट के इस स्तर पर खिलाड़ियों को हर चीज में पाठ पढ़ाने की जरूरत नहीं होती और मैदान से बाहर वो जो करना चाहें उस पर कोई रोकटोक सही नहीं है। शास्त्री के मुताबिक खिलाड़ियों को आजादी मिलना जरूरी है और उन्होंने एक बार फिर इस बात को दोहराया है कि वो भारतीय खिलाड़ियों को आजादी नहीं छीनेंगे। अनुशासित रहते हुए कुंबले की मौजूदगी में भारतीय टीम का प्रदर्शन अच्छा ही रहा था, अब देखना ये होगा कि आजादी और अनुशासन के कॉकटेल से टीम का कितना भला होता है। जाहिर तौर पर युवा खिलाड़ियों को ये अंदाज पसंद आएगा लेकिन दो साल बाद विश्व कप सामने है, अगर भारत का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो यही आजादी खिलाड़ियों के करियर को मुश्किल में डाल देगी, शास्त्री को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, जब उनका करार खत्म, तब उनकी जिम्मेदारी खत्म।