देशभर में गणेशोत्सव की धूम
देहरादून। एक बरस का इंतजार पूरा हुआ और सालाना गणेशोत्सव की धूम मचनी शुरू हो चकी है। पौराणिक मान्यता है कि दस दिवसीय इस उत्सव के दौरान भगवान शिव और पार्वती के पुत्र गणेश पृथ्वी पर रहते हैं। शास्त्रों में दिलचस्पी रखने वाले आचार्य आख्यानंद कहते हैं कि भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। उन्हें बुद्धि, समृद्धि और वैभव का देवता मान कर उनकी पूजा की जाती है। गणेशोत्सव की शुरुआत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भादों माह में शुक्ल चतुर्थी से होती है। इस दिन को गणेश चतुर्थी कहा जाता है। दस दिन तक गणपति पूजा के बाद आती है अनंत चतुर्दशी जिस दिन यह उत्सव समाप्त होता है। पूरे भारत में गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
गणपति उत्सव का इतिहास वैसे तो काफी पुराना है लेकिन इस सालाना घरेलू उत्सव को एक विशाल, संगठित सार्वजनिक आयोजन में तब्दील करने का श्रेय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक लोकमान्य तिलक को जाता है। इतिहास के सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रोण् यूजी गुप्ता ने बताया सन् 1893 में तिलक ने ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच की दूरी खत्म करने के लिए ऐलान किया कि गणेश भगवान सभी के देवता हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने गणेशोत्सव के सार्वजनिक आयोजन किए और देखते ही देखते महाराष्ट्र में हुई यह शुरुआत देश भर में फैल गई। यह प्रयास एकता की एक मिसाल साबित हुआ।
प्रो0 गुप्ता ने कहा कि एकता का यह शंखनाद महाराष्ट्रवासियों को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एकजुट करने में बेहद कारगर साबित हुआ। तिलक ने ही मंडपों में गणेश की बड़ी प्रतिमाओं की स्थापना को प्रोत्साहन दिया। गणेश चतुर्थी के दसवें दिन गणेश विसर्जन की परंपरा भी उन्होंने शुरू की। इतिहास में गहरी दिलचस्पी रखने वाली प्रो0 अमिया गांगुली ने बताया अंग्रेज हमेशा सामाजिक और राजनीतिक आयोजनों के खिलाफ रहते थे। लेकिन गणेशोत्सव के दौरान हर वर्ग के लोग एकत्रित होते और तरह तरह की योजनाएं बनाई जातीं। स्वतंत्रता की अलख जगाने में इस उत्सव ने अहम भूमिका निभाई। गणेशोत्सव का सिलसिला अभी भी जारी है और इसकी तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं।
मूर्तिकार जहां विघ्नहर्ता की आकषर्क मूर्तियां बनाते हैं, वहीं आयोजक चंदा एकत्र कर मंडप स्थापित करते हैं। मूर्तियों का आकार और उनकी कीमत दिनों दिन बढ़ती गई और साथ ही बढ़ता गया इस उत्सव के प्रति लोगों का उत्साह। पंडित आख्यानंद कहते हैं रोशनी, तरह तरह की झांकियों, फूल मालाओं से सजे मंडप में गणेश चतुर्थी के दिन पूजा अर्चना, मंत्रोच्चार के बाद गणपति स्थापना होती है। यह रस्म षोडशोपचार कहलाती है। भगवान को फूल और दूब चढ़ाए जाते हैं तथा नारियल, खांड, 21 मोदक का भोग लगाया जाता है। दस दिन तक गणपति विराजमान रहते हैं और हर दिन सुबह शाम षोडशोपचार की रस्म होती है। 11वें दिन पूजा के बाद प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। कई जगहों पर तीसरे, पांचवे या सातवें दिन गणेश विसर्जन किया जाता है। लम्बोदर के प्रमुख चतुर्वर्ण हैं। सर्वत्र पूज्य सिंदूर वर्ण के हैं। इनका स्वरूप व फल सभी प्रकार के शुभ व मंगल भक्तों को प्रदान करने वाला है। नीलवर्ण उच्छिष्ट गणपति का रूप तांत्रिक क्रिया से संबंधित है। शांति और पुष्टि के लिए श्वेत वर्ण गणपति की आराधना करना चाहिए।
शत्रु के नाश व विघ्नों को रोकने के लिए हरिद्रा गणपति की आराधना की जाती है। गणपतिजी का बीज मंत्र ‘गं’ है। इनसे युक्त मंत्र— ‘उं गं गणपतये नमः’ का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है।
उं वक्रतुंडाय हुम्। किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुँह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता—अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है। उच्छिष्ट गणपति का मंत्र— उं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहां आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपें—गं क्षिप्रप्रसादनाय नमः विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपें —’उं गं नमः’ रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए लक्ष्मी विनायक मंत्र का जप करें—उं श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा। इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है।
इस बार 5 सितंबर को गणेश चतुर्थी है, जिसके लिए पूरे देश में जोर-शोर से तैयारी चल रही है। बुद्धि, ज्ञान और विघ्नविनाशक के रूप में पूजे जाने वाले श्री गणेश जी के स्वागत के लिए इस समय उनके भक्तगण पूरी तरह से तैयार हैं। ऐसा माना जाता है कि गणपति जी का जन्म मध्यकाल में हुआ था इसलिए उनकी स्थापना इसी काल में होनी चाहिए। काशी के पंडित दिवाकर शास्त्री के मुताबिक इस बार चतुर्थी वाले दिन काफी अच्छे संयोग बन रहे हैं। रविवार को ही चतुर्थी शाम 6 बजकर 54 मिनट से लग जायेगी जो कि 5 सितंबर को रात 9 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी।
इस कारण आप सोमवार को सुबह से लेकर रात 21:10 के बीच में बप्पा की पूजा और स्थापना कर सकते है। वैसे पूजा का सबसे अच्छा वक्त सोमवार को दिन के 11 बजे से लेकर दोपहर के 1 बजकर 38 मिनट तक का है। मालूम हो कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी के 10 दिन तक गणेश उत्सव मनाया जाता है। विघ्नहर्ता की दिल से पूजा करने से इंसान को सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है और मुसीबतों से छुटकारा मिलता है।