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सिस्टम का शर्मनाक चेहरा

देहरादून, (विनरटाइम्स)। मानवता शायद मर चुकी, सिस्टम पूरी तरह फेल हो चुका है और व्यवस्थाओं का शर्मनाक व काला चेहरा खुलकर सामने आ चुका है। हम यहां ये बात इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ऐसा ही एक मंजर सामने आया है जिसमें समाज समेत पूरी व्यवस्थाओं की एक लापरवाह और शर्मनाक तस्वीर उजागर हुई है। मामला देहरादून कोतवाली के धारा चौकी क्षेत्र का है। जहां राजपुर रोड पर स्थित गांधी पार्क में सोमवार सुबह 11 बजे के लगभग एक युवती उम्र लगभग 20 से 22 वर्ष (नाम व पता अज्ञात) बेहोशी की हालत में बेंच पर पड़ी हुई थी। ये युवती यहां कैसे पंहुची और इसके साथ क्या हुआ इस बात की जानकारी किसी को नहीं थी। आसपास से गुजर रहे कुछ लोगों ने उक्त युवती को बेहोशी की हालत में पड़ा देख पास ही रोड पर खड़े सिटी पेटरोल यूनिट (सीपीयू) के जवानों को खबर दी। सूचना पाकर मौके पर पंहुचे सीपीयू के जवान उक्त युवती की सुध लेने के बजाय उसकी वीडियो रिकार्डिंग करने लगे। आपको बता दें कि ये वहीं सीपीयू के जवान हैं जिनकी तैनाती नगर में अपराध को नियंत्रित करने के लिए की गई है किन्तु ये मुश्तैद जवान अपने कर्तव्यों को किनारे रखकर महज चालान काटते और चालान के नाम पर आम जनता से मारपीट व बदसलूकी करते हुए नजर आते हैं।

सीपीयू के इन जवानों ने मौके पर पंहुचकर भी उक्त बेहोश लड़की की कोई मदद नहीं की और मूक दर्शक बने तमाशा देखते रहे। इसी बीच किसी शख्स ने धारा चौकी पुलिस को मामले से अवगत कराया। लगभग एक घण्टा व्यतीत हो जाने के बाद धारा चौकी से पूनम वर्मा नामक एक लेडी कांस्टेबल घटना स्थल पर पंहुची। युवती की हालत देख उक्त लेडी कांस्टेबल ने इमरजेंसी एम्बुलेंस सेवा 108 को अपने मोबाइल से फोन किया। इस पर दूसरी ओर से 108 कर्मियों द्वारा पीड़ित युवती से सम्बंधित तरह—तरह से सवाल पूछे गये और कुछ ही मिनटों में फोन काल कट गई। किन्तु तत्काल उपचार नहीं पंहुचा। इस बीच बेहोश युवती के चारो ओर लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई। मगर किसी ने भी उस युवती को उठाकर ऑटो रिक्शा में बैठाने और अस्पताल पंहुचाने की जहमत नहीं उठायी। अब सीपीयू कर्मियों की ही तरह महिला कांस्टेबल भी मूक दर्शक बन चुकी थी और खामोश होकर तमाशा देख रही थी। पुलिस के चुस्त कर्मियों और आसपास मौजूद मूक दर्शक लोगों के बीच कुछ मीडियाकर्मी भीड़ देखकर आ धमके और अपने कैमरों में पूरे दृश्य को कैद करने लगे। इन्हीं प्रेस के लोगों ने पुलिसकर्मियों पर दबाव बनाया और पुलिस को उसका कर्तव्य याद दिलाते हुए बेहोश युवती की मदद करने को दबाव बनाया। जनता की भीड़ और अपने उपर दबाव बनता देख पुलिस ने अपने दो अन्य सहयोगी कास्टेबलों को भी मौके पर बुला लिया।

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इसके बाद महज एक महिला पुलिसकर्मी, दो पुरूष पुलिसकर्मियों व एक अन्य युवक ने बड़ी ही लापरवाही और बेरहमी से उस बेहोश युवती को उठाया और उसे ऑटो रिक्शा में बैठाया। ऑटो में बैठाने से पहले इन लोगों के द्वारा कई बार बेहोश युवती को जमीन पर गिराया गया, जिस वजह से बेहोश युवती को कई जगह चोटें भी आ गई। पुलिस द्वारा ऑटो के भीतर भी युवती को जानवरों की तरह ठूंसा गया और सीट पर ना लिटाकर ऑटो के फर्श पर ही युवती को पटक दिया गया मानों उस युवती में जान ही ना हो। बहरहाल लगभग दो घण्टा इंतजार के बाद बीमार युवती को अस्पताल पंहुचाया गया। इस घटना ने हमारे समाज और पुलिस प्रशासन की व्यवस्थाओं की कलई खोलकर रख दी है। पुलिसकर्मी यदि चाहते तो समय से उक्त बीमार युवती को अस्पताल पंहुचा सकते थे। ठीक वैसे ही वहां मूक दर्शक बने लोग भी अगर चाहते तो पुलिस को सूचित करने के साथ ही स्वंय ऑटो या अन्य वाहन से युवती को उपचार के लिए अस्पताल पंहुचा सकते थे।

ये आलम तब है जब देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीमकोर्ट ने ये आदेश किये हुए हैं कि किसी भी घायल व बीमार को उपचार के लिए अस्पताल पंहुचाने वाले व्यक्ति से पुलिस कोई भी पूछताछ नहीं कर सकती और ना ही मददगार व्यक्ति पर किसी प्रकार का दबाव बना सकती है। मगर बावजूद इसके हमारे समाज में जागरूकता का अभाव है और मानवता शायद हमारे बीच से मर चुकी है। प्रशासनिक सिस्टम चाहे वो आपातकालीन सेवा 108 हो या पुलिस के मुश्तैद जवान सभी की व्यवस्थाएं पूरी तरह से फेल नजर आयी। बहरहाल इतना ही उदाहरण काफी है। सिस्टम और समाज का शर्मनाक चेहरा दिखाने के लिए।

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