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रेप के आरोपी से 20 लाख रूपये लेकर मामला निपटाना चाहते थे परिजन, पीड़िता ने पंहुचाया सलाखों के पीछे

नई दिल्ली। बीेते कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं पर अत्याचार और उनके साथ बलात्कार की वारदातों में तेजी से इजाफा हुआ है। एक ओर जहां पूरा देश कठुआ और उन्नाव रेप केस के कारण आक्रोश में है और लोग आरोपियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही करने की मांग कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ़, देश की राजधानी दिल्ली में एक रेप पीड़िता के परिजनों द्वारा केस को रफ़ा-दफ़ा करने के लिए बलात्कार के आरोपी से 20 लाख रुपये की रिश्वत लेने का शर्मनाक मामला सामने आया है। ये मामला अगस्त 2017 का है। दरअसल, 30 अगस्त को दिल्ली के प्रेमनगर इलाके से एक 15 साल की लड़की अचानक गायब हो गई थी। लड़की के परिवार वालों ने अमन विहार थाने में उसके किडनैप होने की एफ़आईआर दर्ज कराई। इसके एक सप्ताह बाद वो लड़की अपने घर वापस आ गई।

यहां उसने घरवालों को बताया कि उसके साथ गैंग रेप हुआ है, जिसमें पास का ही एक प्रॉपर्टी डीलर शामिल है। उसने थाने में दर्ज अपनी शिकायत में कहा, ‘पूरे एक सप्ताह तक उसे दिल्ली-एनसीआर के कई इलाकों में घुमाया जाता रहा और कई बार उसका गैंगरेप किया गया।’ कुछ दिनों बाद उन्होंने उसे छोड़ दिया। एफ़आईआर दर्ज हो जाने के बाद पुलिस ने आरोपी और उसके साथियों को गिरफ़्तार कर लिया, लेकिन सभी आरोपियों को बेल मिल गई।

वहीं पीड़ित लड़की को उस वक़्त हैरानी हुई, जब उसे पता चला कि उसके माता-पिता बलात्कार के आरोपी से 20 लाख रुपये लेकर इस केस को रफ़ा-दफ़ा करना चाहते हैं और एडवांस में 5 लाख रुपये ले भी लिए। पीड़िता के परिजन उस पर कोर्ट में बयान बदलने के लिए दबाव डालने लगे। मगर उसने ऐसा करने से इंकार कर दिया और वो पूरे पैसे लेकर थाने पहुंच गई। यहां उसने सारा मामला पुलिस अधिकारियों को बताया और अपने मां-बाप के ख़िलाफ शिकायत की।

फ़िलहाल पुलिस ने पीड़िता की मां को गिरफ़्तार कर लिया है और उसके पिता की तलाश जारी है। इस पूरे मामले की जांच कर रहे एक अधिकारी ने बताया कि बच्ची के मां-बाप के ख़िलाफ़ जुवेनाइल एक्ट और आपराधिक धमकी देने का मामला दर्ज कर लिया गया है। जबकि बच्ची को बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया है। मुसीबत की घड़ी में हर बच्चे को ये आस रहती है कि उसके मां-बाप उसे सहारा देंगे और वो उसके साथ हमेशा खड़े रहेंगे, लेकिन इस घटना ने साबित कर दिया कि हमारा समाज नैतिक पतन की ओर बढ़ता चला जा रहा है। क्या हम वाकई अच्छे और बुरे में फ़र्क करना भूल गए हैं?

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