बदरीनाथ धाम में उगे चमत्कारिक पौधे
देहरादून। देश-दुनिया के करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े बदरीनाथ क्षेत्र के इस पौधे ने अपनी चमत्कारिक खूबियों से वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया है। वैज्ञानिक तो बस इतना पता कर रहे थे कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का बदरी तुलसी पर क्या असर पड़ेगा? लेकिन नतीजों ने उन्हें चौंका दिया कि हजारों साल पहले हिमालय की बर्फीली वादियों में उपजी और ठंडे माहौल में रहने की आदी बदरी तुलसी अधिक कार्बन तो सोखेगी ही, तापमान बढ़ने पर और बलवती हो जाएगी।
चारधाम आने वाले सैलानी और श्रद्धालु बदरी तुलसी को प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाते हैं। क्षेत्रीय लोगों ने इसे भगवान बदरी विशाल को समर्पित कर दिया है। कोई भी इसके पौधों को हानि नहीं पहुंचाता। सिर्फ श्रद्धालु इसे प्रसाद ग्रहण करने की भावना से तोड़ते हैं।
बदरी तुलसी इतने बड़े पैमाने पर सिर्फ बदरीनाथ धाम में ही मिलती है। पुराणों में इसके औषधीय गुणों का खूब बखान किया गया है। लोग इसकी चाय भी पीते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रहे नए माहौल में इसके अन्य गुण भी उजागर हो गए हैं।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए तैयार किए जा रहे डाटा बेस के तहत पहली बार विज्ञानियों ने बदरी तुलसी पर परीक्षण किया। इस देसी हिमालयी जड़ी के अंदर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की अद्भुत क्षमता पाई गई।
वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) की इकोलॉजी, क्लाइमेट चेंज एंड फॉरेस्ट इन्फ्सुएंस डिवीजन ने अपने ओपन टॉप चैंबर में इस पर परीक्षण किया। इसमें पाया गया कि सामान्य तुलसी और अन्य पौधों से इसमें कार्बन सोखने की क्षमता 12 फीसदी अधिक है। तापमान अधिक बढ़ने पर इसकी क्षमता 22 फीसदी और बढ़ जाएगी। इसका पौधा 5-6 फुट लंबा हो जाता है। पौधे एक कै नोपी (छतरी) की शक्ल बना लेते हैं, जिससे यह अधिक कार्बन सोख लेती है।
इन बीमारियों में फायदेमंद:
चर्म रोग (लेसमेनियासिस), डायरिया, डायबिटीज, घाव, बाल झड़ना, सिर दर्द, इंफ्लुइंजा, फंगल संक्रमण, बुखार, कफ-खांसी, बैक्टीरियल संक्रमण आदि।
यह अधिक कार्बन सोखती है और तापमान बढ़ने पर इसकी क्षमता और बढ़ेगी।