उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने भूस्खलन को लेकर व्यक्त की चिंता, सरकार से की ये माँग
देहरादून/नैनीताल। उत्तराखंड की बेटी, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी, प्रसिद्ध जनसेवी एवं जनता कैबिनेट पार्टी (जेसीपी) की केंद्रीय अध्यक्ष भावना पांडे ने उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बरसात की वजह से हो रहे भूस्खलन को लेकर चिंता व्यक्त की है। साथ ही सरकार व प्रशासन से एहतियातन सभी जरूरी कदम उठाने की मांग की है।
जनसेवी भावना पांडे ने कहा कि मानसून की आहट के साथ ही उत्तराखंड के पहाड़ों में भूस्खलन की घटनाएं होनी शुरू हो जाती हैं। उन्होंने नैनीताल जनपद का ज़िक्र करते हुए कहा कि नैनीताल के तल्लीताल क्षेत्र से लगा बलियानाला क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील माना जाता है। तकरीबन डेढ़ सौ साल से बलियानाला की पहाड़ी दरक रही है। पहाड़ी के ट्रीटमेंट के नाम पर अब तक करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन नतीजा सिफर है, वजह है कि इसका स्थाई समाधान न खोजकर महज़ खानापूर्ति ही की जाती रही है। इस बार भी इस संवेदनशील पहाड़ी से सटे क्षेत्रों में रह रहे करीब 55 परिवारों पर खतरा मंडरा रहा है। वहीं स्थायी ट्रीटमेंट के नाम पर सरकार कोई कदम उठाती नज़र नहीं आ रही है।
उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने कहा कि ये बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि आज तक न तो भू वैज्ञानिक और न ही संबंधित विभाग बलियानाला के मर्ज की दवा खोज पाए हैं। बलियानाला क्षेत्र में भूस्खलन का इतिहास 155 साल पुराना है। हाल के वर्षों में यह अधिक खतरनाक हो गया है। यदि युद्ध स्तर पर इसका उपचार नहीं हुआ तो नैनीताल शहर और झील के लिए यह भूस्खलन बड़ा खतरा साबित हो सकता है। यह पहाड़ी नैनीझील की जड़ में है। इसी पहाड़ी की तलहटी से होकर नैनीझील का अतिरिक्त पानी बाहर निकलता है।
उन्होंने कहा कि उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1867 में बलियानाला में सबसे पहले भूस्खलन हुआ था। उसके बाद वर्ष 1889 में हुए भूस्खलन में वीरभट्टी-ज्योलीकोट रोड ध्वस्त हुई। वर्ष 1889 में ही यहां से कैलाखान की ओर भूस्खलन हुआ। 17 अगस्त 1898 के भीषण भूस्खलन में यहां 27 लोगों की जान गई और प्रसिद्ध बियर फैक्ट्री तबाह हो गई। वर्ष 1924 में यहां फिर भारी भूस्खलन हुआ जिसमें एक स्थानीय महिला और दो पर्यटक मारे गए। इस बार यहां स्थित एक रेस्टोरेंट, कुछ दुकानें, पुलिस चेक पोस्ट और राज्यपाल का गैराज जमींदोज हो गए। तब इसकी चपेट में वर्तमान पुलिस लाइन तक का क्षेत्र तक आ गया था।
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने चिंता जताते हुए कहा कि वर्षों से हो रहे इस भूस्खलन से हरिनगर समेत आसपास का पूरा क्षेत्र तो खतरे की जद में है ही, अब नगर की ओर भी यह बढ़ने लगा है। वर्ष 2018 में जिला प्रशासन ने इसके उपचार के लिए जायका योजना के तहत 620 करोड़ की योजना बनाई थी लेकिन योजना कारगर साबित नहीं हुई। फलस्वरूप हालात ज़स के तस बने हुए हैं।
वहीं नैनीझील से सटी ठंडी सड़क की पहाड़ी में बीते एक साल से रुक रुककर भूस्खलन हो रहा है। इस पहाड़ी का एक बड़ा हिस्सा अब तक नैनीझील में समा चुका है। यही नहीं भूस्खलन के कारण डीएसबी परिसर का एक छात्रावास भी जमींदोज होने की स्थिति में है। उन्होंने कहा कि मल्लीताल क्षेत्र से सटा सात नंबर क्षेत्र भी भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। पिछले कई साल से यह पहाड़ी भी अलग-अलग स्थानों पर दरक रही है जिससे आवासीय क्षेत्र को खतरा पैदा हो गया है। हाल के दिनों में भी यहां एक बड़ा भूस्खलन हुआ था लेकिन संयोगवश तब जानमाल का नुकसान नहीं हुआ था।
जेसीपी अध्यक्ष भावना पांडे ने कहा कि शोध और अनुसंधान से पता चला है कि बलियानाला की पहाड़ी हर वर्ष 60 सेंटीमीटर से एक मीटर तक खिसक रही है। यह बहुत ही गंभीर स्थिति है। यदि इसी तरह धीरे-धीरे भूस्खलन होता रहा तो नैनीताल ही नहीं बल्कि ज्योलीकोट क्षेत्र को भी खतरा पैदा हो सकता है। उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि इस पहाड़ी पर भूस्खलन को रोकने के लिए ठीक वैसे ही उपाय किये जाएं, जैसे उत्तरकाशी में वरुणावत पर्वत के भूस्खलन को रोकने के लिए किए गए थे। तभी स्थानीय लोगों को राहत मिल पाएगी।