आखिर कब मिलेगा निर्भया को इंसाफ
नई दिल्ली। निर्भया के गुनहगारों को फांसी पर कब लटकाया जाएगा, यह सवाल अभी कायम है। निर्भया के पिता का कहना है कि रिव्यू पिटिशन खारिज होने के बाद अभी तक क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल नहीं किया गया है और न ही दया याचिका दाखिल की गई है। ऐसे में वे इस तथ्य को लेकर अंधेरे में हैं कि आखिर निर्भया के गुनहगारों को फांसी पर कब लटकाया जाएगा।
कानूनी जानकारों का कहना है कि अभी क्यूरेटिव पिटिशन और मर्सी पिटिशन दाखिल करने का कानूनी उपचार बाकी है। मामले में चारों मुजरिमों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है और तीन मुजरिमों की रिव्यू पिटिशन खारिज हो चुकी है। जबकि चौथे अक्षय की ओर से रिव्यू पिटिशन दाखिल नहीं की गई।
मुजरिमों के वकील ने बताया कि उनकी ओर से क्यूरिटिव पिटिशन दाखिल किया जाना है। वहीं एक मुजरिम ने खुद को जुवेनाइल घोषित करने की अर्जी दाखिल कर रखी है। मामला अभी कानूनी दावपेंच में उलझा हुआ है। दूसरी ओर, निर्भया के पैरंट्स का कहना है कि इन कारणों से वह अभी तक अंधेरे में हैं कि आखिर इंसाफ कब मिलेगा।
इसी साल 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने तीन दोषियों की रिव्यू पिटिशन खारिज करते हुए उनकी फांसी की सजा को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 4 मई को पवन, विनय और मुकेश की रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। अक्षय की ओर से रिव्यू पिटिशन नहीं डाली गई थी। अक्षय के वकील एपी सिंह ने बताया कि अक्षय की ओर से अभी रिव्यू पिटिशन दाखिल की जानी है। वहीं पवन की ओर से उन्होंने निचली अदालत में अर्जी दाखिल कर उसे जुवेनाइल घोषित करने की गुहार लगा रखी है, जो मामला अभी पेंडिंग है।
पवन और विनय की ओर से अभी वह क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने वाले हैं। मुकेश के वकील एमएल शर्मा का कहना है कि मुकेश की ओर से क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल किया जाना है। मुजरिमों के वकील ने कहा कि अभी उनके पास कानूनी उपचार बचा हुआ है। अगर क्यूरेटिव पिटिशन भी खारिज कर दिया जाता है तो फिर राष्ट्रपति के सामने मर्सी पिटिशन दाखिल किए जाने का प्रावधान है।
निर्भया के पिता ने बताया कि 9 जुलाई को जब रिव्यू पिटिशन सुप्रीम कोर्ट से खारिज किया गया, उसके बाद क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल किए जाने का प्रावधान बचा हुआ है। लेकिन आखिर कब तक क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल किए जाने का इंतजार किया जाएगा। इस बारे में उन्होंने तमाम सरकारी अथॉरिटी से पता करने की कोशिश की।
तब वह निचली अदालत के सामने गए। जिस अदालत ने पहली बार फांसी की सजा सुनाई थी, उसी अदालत के सामने डेथ वॉरंट जारी करने की उन्होंने गुहार लगाई थी और उन्हें 18 दिसंबर को बुलाया गया है। इसी बीच उन्हें पता चला कि पवन की ओर से अर्जी दाखिल कर जुवेनाइल घोषित करने की गुहार लगाई गई है, जिस पर 21 दिसंबर को सुनवाई होनी है। जिस दिन गुनहगारों को फांसी पर लटाकाया जाएगा, उसी दिन उनके दिल को तसल्ली मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों को पिछले साल 5 मई को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसके बाद तीन दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी, जिसे खारिज किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2017 को चारों मुजरिमों पवन, अक्षय, विनय और मुकेश की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। अदालत ने कहा कि पीड़िता ने मरने से पहले जो बयान दिया, वह बेहद अहम और पुख्ता साक्ष्य हैं।
जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि ये मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने कहा था कि अत्यंत बर्बरता की गई और दरिंदगी की सारी हदें पार की गईं। गैंग रेप के बाद चलती बस से उसे नीचे फेंक दिया गया। उसके दोस्त को भी नीचे फेंका गया। जाड़े की रात में उनके शरीर पर कपड़े तक नहीं थे। उन्हें मरने के लिए नीचे फेंका गया। साथ ही उनके शरीर पर बस चढाने की कोशिश की गई, ताकि कोई सबूत न बचे। हवस का शिकार बनाया गया और उसे मनोरंजन का साधन समझा गया।
सुप्रीम कोर्ट से भी अगर फांसी की सजा बरकरार रखी जाए, उसके बाद मुजरिम चाहे तो रिव्यू पिटिशन दायर कर सकता है। रिव्यू पिटिशन उसी बेंच के सामने दायर की जाती है, जिसने फैसला दिया है। रिव्यू पिटिशन में मुजरिम फैसले को बदलने के लिए दलील दे सकता है।
रिव्यू पिटिशन भी अगर खारिज हो जाए तो मुजरिम क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी बताते हैं कि क्यूरेटिव पिटिशन में जजमेंट में तकनीकी तौर पर सवाल उठाया जा सकता है। जजमेंट के कानूनी पहलू को देखा जाता है और अगर किसी पहलू को नहीं देखा गया है तो उस मुद्दे को क्यूरेटिव पिटिशन में उठाया जाता है।
क्यूरेटिव पिटिशन और रिव्यू पिटिशन पर आमतौर पर इन चैंबर ही कार्रवाई होती है। लेकिन किसी मामले में कोर्ट को लगे कि वह क्यूरेटिव या फिर रिव्यू पिटिशन की सुनवाई ओपन कोर्ट में हो सकती है, तब कोर्ट ओपन कोर्ट में सुनवाई करती है। लेकिन रिव्यू के बाद अगर क्यूरेटिव पिटिशन भी खारिज हो जाए उसके बाद मुजरिम को दया याचिका दायर करने का अधिकार है।
रिव्यू और क्यूरेटिव पिटिशन खारिज होने के बाद राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर किए जाने का प्रावधान है। राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद-72 व राज्यपाल अनुच्छेद-161 के तहत दया याचिका पर सुनवाई करते हैं। इस दौरान राष्ट्रपति गृह मंत्रालय से रिपोर्ट मांगते हैं और फिर सरकार अपनी सिफारिश राष्ट्रपति को भेजता है और फिर राष्ट्रपति दया याचिका का निपटारा करते हैं। अगर राष्ट्रपति दया याचिका खारिज कर दे उसके बाद मुजरिम को फांसी पर लटकाने का रास्ता साफ होता है। हालांकि दया याचिका के निपटारे में गैरवाजिब देरी के आधार पर मुजरिम चाहे तो दोबारा सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकता है।
तमाम अर्जी खारिज होने के बाद संबंधित निचली अदालत मुजरिम के नाम डेथ वॉरंट जारी करता है। जब मामला कहीं भी पेंडिंग न हो तो सरकार की ओर से निचली अदालत को सूचित किया जाता है कि अमुक मुजरिम की अर्जी कहीं भी पेंडिंग नहीं है, लिहाजा उसे कब फांसी पर चढ़ाया जाए।
इसके बाद निचली अदालत डेथ वॉरंट जारी करता है और उसमें फांसी दिए जाने की तारीख और समय तय की जाती है और इस बारे में संबंधित जेल सुपरिंटेंडेंट को कहा जाता है। इसके बाद मैजिस्ट्रेट फांसी पर लटकाने के पहले उसकी आखिरी इच्छा पूछता है। मसलन उसकी प्रॉपर्टी आदि किसके नाम किया जाए आदि और उसके बाद डॉक्टर, जेल सुपरिंटेंडेंट व पुलिस कर्मियों की मौजूदगी में जल्लाद मुजरिम को फांसी पर लटकाता है।