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आस्था के नाम पर पाखंड, ढोंग और आडंबर का खेल जारी

नयी दिल्ली। भारत में आस्था के नाम पर पाखंड, ढोंग और आडंबर का खेल जारी हैं। एक ऐसा ही ढोंग का खेल रचने वाला तथाकथित बाबा फिर सुर्खियों में हैं। दिल्ली के रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय चलाने वाले तथाकथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित पर उसी की शिष्या ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बाबा सोलह हजार एक सौ आठ लड़कियों के साथ कुकर्म करना चाहता था। आश्रम के अंदर सुरंग में बने कमरे में लड़कियों को गुप्त प्रसाद देने के बहाने बाबा दुष्कर्म व अश्लील हरकतों पर उतर आता था। आश्रम में मिली कई ऐसी चीजें इस बात की ओर इशारा करती है कि दाल में कुछ तो काला है। इतना ही नहीं, इससे पहले भी बाबा पर अब तक अलग-अलग थानों में 10 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। इनमें से ज्यादातर बलात्कार के मुकदमे हैं। ये शिकायतें 1998 से लेकर अब तक पुलिस थानों में दर्ज की गई हैं। अलग-अलग थानों में दर्ज 10 एफआईआर के अलावा पुलिस की डायरी एंट्री में एक महिला की आत्महत्या का मामला भी दर्ज है। बहरहाल, बाबा भूमिगत है और देश के विभिन्न राज्यों में चल रहे वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रमों को पुलिस सील करके इनमें फंसी लड़कियों को बाहर निकाल रही है। थोड़े दिनों पहले ही तथाकथित बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह के आश्रम में चल रही काली करतूतों का काला चिट्ठा सार्वजनिक हुआ था। अब आरोपित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित की आधी सच्चाई तो बाहर आ चुकी है और बाकी सच्चाई भी जल्दी ही बाहर आ जाएंगी।

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श्रद्धा और विश्वास के नाम पर चल रहे इन आश्रमों में ऐसा भी कुछ हो सकता है, इसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। ऐसे में ये दोनों घटनाएं तो ज्वलंत उदाहरण मात्र हैं बाकि भारत में ऐसे ढोंगी बाबाओं का एक लंबा इतिहास दृष्टिपात होता है। इन फर्जी, ढोंगी एवं स्वयंभू बाबाओं की सूची में आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी, आसाराम का बेटा नारायण साईं, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, नित्यानंद, रामपाल, स्वामी असीमानंद, ऊं नमः शिवाय बाबा, कुश मुनि, बृहस्पति गिरि, वृहस्पति गिरी और मलकान गिरि समेत कई लोगों के नाम शामिल हैं।
ये सब वे बाबा हैं जो खुद को भगवान मानने से परहेज नहीं करते हैं। धर्म के नाम पर अधर्म का पाठ पढ़ाकर लूट की दुकान चलाने वाले ये बाबा जितने दोषी हैं, उतने ही इनके भक्त भी दोषी हैं। स्मरण रहे कि गुरमीत राम रहीम सिंह की गिरफ्तारी के वक्त उसके अंधभक्तों ने किस तरह फसाद खड़ा करके सरकारी कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास किया था। उसी तरह आशाराम के गिरफ्तार होने के बाद भी उसके अंधभक्तों की जरा भी श्रद्धा उस पर से कम नहीं हुई है। सच है कि अंधभक्त सिर्फ नेताओं के ही नहीं बल्कि इन बाबाओं के भी हैं। जो इनके संरक्षण में अपनी जान तक न्यौछावर करने से पीछे नहीं हटते हैं। इन्हीं अंधभक्तों की अंधश्रद्धा का फायदा उठाकर ये ढोंगी बाबा और स्वयंभू साधु-संत व मौलाना गेरूए, काले व हरे वस्त्रों को धारण करके हर गलत काम को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहे हैं। यही कारण है कि भारत में सड़क से लेकर बड़े-बड़े आलीशान आश्रमों में आस्था को अपने-अपने ढंग से बेचा और खरीदा जा रहा है। गौर करने वाली बात तो यह है कि इन बाबाओं की शरण में जाने वाले अधिकत्तर लोग पढ़े-लिखे हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि हमारी शिक्षा प्रणाली क्या इतनी सक्षम नहीं है कि गलत और सही का फर्क बता सके ?
बाबाओं की संख्या भारत में तेज गति से बढ़ रही है। यहां के लोग तरह-तरह के बाबा बनकर लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। एक ओर हमारा ज्ञान लज्जित हो रहा है, तो दूसरी विज्ञान की धज्जियां उड़ रही हैं। चांद पर जाने वाला और बड़े-बड़े उपग्रह प्रक्षेपित करने वाला भारत अब तक इन ढोंगी और पाखंडी बाबाओं की दलदल से बाहर नहीं निकल पाया है। क्या इस तरह हम विकासशील से विकसित हो पाएंगे ? क्या अब ये अज्ञान का अंधेरा नहीं हटना चाहिए ? यह भी सच है कि हर संत ऐसा नहीं हैं। लेकिन, आजकल सामने आ रहे कुछ ढोंगी बाबाओं और संतों के कारण इन सच्चे सामजिक सुधारक संतों को भी कलंकित होना पड़ रहा है। सोचनीय है कि हम किस समाज में जी रहे हैं? जहां अभी तक ईश्वर और अल्लाह की सही समझ लोगों को नहीं है। जहां आज भी लोग ताबीज, रूद्राक्ष और मालाओं पर सबसे अधिक भरोसा करते हैं। जहां आज भी औरतों को मासिक धर्म के दिनों में रसोई घर से बाहर रखा जाता है। कई मंदिरों और मस्जिदों में इनके प्रवेश पर रोक लगायी जाती है। हाल के वर्षों में ऐसे कितने संत और बाबा हुए हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर कोई सुधार व जन-जागृति का काम किया हो ? केवल और केवल धर्म का हवाला देकर ये बाबा कभी हिन्दू को मुस्लिम से तो कभी मुस्लिम को ईसाई से लड़वाकर अशांति और कोलाहल पैदा करते हुए पाये गए हैं। इनके आगे धर्म और मजहब की बलिहारी जनता सब कुछ तमाशबीन की तरह देखती आ रही है।
चमत्कारी बाबाओं और भगवानों द्वारा महिलाओं के शोषण की बातें हमेशा से प्रकाश में आती रही हैं और धन तो इनके पास दान का इतना आता है कि जिसे यह खुद भी नहीं गिन सकते। इसके दोषी केवल यह बाबा, मुल्ला या भगवान नहीं बल्कि हमारा यह भटका हुआ समाज है जो किरदार की जगह चमत्कारों से भगवान को पहचानने की गलती किया करता है। आज जरूरत है कि भारत में फैलते आडंबर और अंधविश्वास के लिए धार्मिक सुधार आंदोलन चलाया जाए। लोगों को आस्था और अंधश्रद्धा के बीच का अंतर बताया जाए। भाग्यवाद और नसीब की जगह कर्मवाद पर भरोसा करने की नसीहत दी जाए। धर्म और ईश्वर के नाम पर लूटने व नारी अस्मिता के साथ खेलने वाले इन तथाकथित बाबाओं के लिए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान किया जाए।

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