भारत की सर्वाधिक भयावह एवं विकराल समस्याओं में से कालाधन भी एक है। काला धन सिर्फ एक आर्थिक समस्या नहीं है, अपितु इसके वृहत्तर आयाम हैं जो न केवल सामान्य आपराधिक कृत्यों से संबद्ध है अपितु आतंकवाद से भी जुड़ जाता है। इसके साथ ही यह एक सामाजिक समस्या भी है क्योंकि यह समस्या सामाजिक असमानता एवं सामाजिक वंचना से भी जुड़ी है। भारत में काले धन की जड़ें बहुत गहरी हैं। ऐसे में काले धन के मामले में सरकार ने क्रांतिकारी कदम उठाते हुए 500 एवं 1000 रुपए के नोट को 8 नवंबर मध्य रात्रि से बंद कर दिया है। प्रारंभ में लोगों को यह फैसला चौंकाने वाला लग रहा है लेकिन इसके अत्यंत दूरगामी प्रभाव होंगे। लंबे समय से यह देखा जा रहा है कि 500 एवं 1000 के जाली नोट से आतंकवादियों को भी फंडिंग होती थी। इस तरह से इस कदम से आतंकवाद व काला धन दोनों पर चोट होगा क्योंकि दोनों आपस में अंतर्संबंधित हैं। काले धन से तात्पर्य अघोषित आय अथवा कर अपवंचित आय से है अर्थात जिस पर आय कर और अन्य कर नहीं चुकाए जाते हैं। सामान्यत: अवैध खनन करके, सरकारी विकास योजनाओं के धन की चोरी करके, रिश्वतखोरी व टैक्स चोरी करके जो धन देश व विदेश में जमा किया जाता है, वह धन कालाधन है। जिस धन पर एक महत्वपूर्ण भाग सरकार को करों के रुप में प्राप्त होता है और अंतत: देश की समृद्धि एवं सामाजिक आर्थिक विकास में समायोजित होता है, वह काले धन के रूप में कुछ विशेष वर्गों के पास ही रह जाता है। ऐसे में सरकार के इस कदम के महत्व को समझा जा सकता है।
सरकार के इस कदम से देश की राजनीति और चुनाव प्रक्रिया को भी कालेधन से मुक्त किया जा सकेगा। ठेके उपलब्ध कराने, कारोबार में छूट देने, लाइसेंस देने, गोपनीय सूचनाएँ देने तथा ऐसे कानून बनवाने, जिनमें बचने के रास्ते हों, के नाम पर प्रभावशाली राजनीतिज्ञ जमकर काला धन कमाते हैं। इसमें नौकरशाही की संलिप्तता रहती थी। लेकिन स्वयं प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के संबोधन में कहा कि यह कदम राजनीति और चुनाव प्रक्रिया को स्वच्छ करेगा। काला धन देश की अर्थव्यवस्था तथा राष्ट्र की सामुदायिक विकास योजनाओं पर घातक प्रभाव डालकर गतिरोध पैदा करता है। काले धन के कारण उत्पादन दर, स्फीति दर, बेरोजगारी एवं निर्धनता आदि की सही दरों को मापने में भी बाधा पहुंचती है। फलत: इन समस्याओं को नियंत्रित करने संबंधी सरकारी नीतियां भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हैं। इससे जहाँ सामाजिक असमानता बढ़ती है, वहीं ईमानदार नागरिकों में निराशा और हताशा बढ़ती है। अधिकांशत: काले धन का उपयोग अवैध कार्यों एवं आतंकवाद को प्रोत्साहन देने के लिए किया जाता है। इसके कारण जहां सामाजिक विकृतियां एवं कुरीतियां पनपती हैं, वहीं अपराध एवं अराजकता में भी इजाफा होता है। सारत: यह कह सकते हैं कि काला धन देश की अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह चाटकर उसे खोखला बना देता है। ऐसे में सुदृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के लिए यह कदम अपरिहार्य था।
इन नोटों के बाहर होने से संपूर्ण अर्थव्यवस्था कैशलैस बनेगी। ब्लैकमनी, भ्रष्टाचार, अन्य अपराधों को नियंत्रित करने के अतिरिक्त यह संपूर्ण बैंकिंग व्यवस्था को मजबूत करेगा, जो पुन: संपूर्ण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त रियल स्टेट जो ब्लैकमनी का हब हुआ करता था, में काफी सुधार होगा। इससे उनके मूल्य तर्कसंगत होंगे तथा सामान्य लोग भी अपने घर के सपनों को पूरा कर सकेंगे। चिकित्सा, इंजीनियरिंग इत्यादि व्यावसायिक शिक्षा में भी काले धन की संबद्धता थी तथा ये काफी हद तक विशिष्ट वर्ग के लिए संबंधित हो गई थी, परंतु अब ब्लैक मनी के सफाये के बाद चीजें काफी बदलेंगी। सरकार के उपरोक्त कदम से ऑफिसियल ट्रांजिक्शन में वृद्धि होगी। इससे केन्द्र एवं राज्य सरकारों के राजस्व में जबरदस्त लाभ होगा क्योंकि ब्लैकमनी की समानान्तर अर्थव्यवस्था खत्म होगी। अधिकृत ट्रांजिकशन से लंबी अवधि में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों पर भी प्रभाव बढ़ेगा।
भ्रष्टाचार और काले धन के ख़िलाफ़ भारत सरकार द्वारा काफी कठोर व प्रभावी कदम उठाए गए। उदाहरण के तौर पर काले धन की जांच हेतु सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में एस.आई.टी का गठन किया गया। विदेशों में जमा काले धन हेतु 2015 में भारत सरकार द्वारा मजबूत कानून बनाया गया और विभिन्न देशों के साथ टैक्स समझौते में परिवर्तन किया गया। उदाहरण के तौर पर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के साथ सूचना आदान प्रदान करने का प्रावधान किया गया ताकि बेनामी संपत्ति को रोका जा सके। 2015 के इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत अवैध धन रखने पर 10 वर्ष की सख्त सजा एवं जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। इसके साथ ही लोगों को डिसक्लोजर विंडो बनाकर ब्लैक मनी घोषित करने के लिए कहा गया। इस स्कीम के तहत 65,000 करोड़ रुपये बाहर आए। इसके बाद सरकार का यह चौंकाने वाला दूरगामी निर्णय सामने आया।
भारत सरकार ने कालेधन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद और जाली नोटों पर शिकंजा कसने हेतु अपने सख़्त कदम की दिशा में अग्रसर होते हुए 8 नवंबर 2016 की मध्य रात्रि यानी 12 बजे रात से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहने की घोषणा की। अर्थात ये मुद्राएं कानूनी रूप से अमान्य होंगी। काले धन और काले नोटों में लिपटे देश विरोधी तत्वों के पास मौजूदा 500 व 1000 के नोट मात्र कागज़ के टुकड़े के समान रह जाएंगे। इन पहलों के और भी अच्छे परिणाम मिल सकेंगे, जब काले धन के विरुद्ध लड़ाई में जन सहभागिता बढ़े तथा राष्ट्रवासी इस समस्या के प्रति जागरूकता का परिचय दें। वैसे, सरकार के इस कदम से जागरूकता बढ़ी है और माहौल काफी अच्छा बनता दिख रहा है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में काले धन के विरुद्ध सरकार का यह संघर्ष राष्ट्र को अप्रत्याशित सफलताओं से विभूषित करेगा।