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ब्लैकमनी को छोड़ कैशलेस पर अड़ी सरकार

केन्द्र सरकार के अड़ियल रवैये का खामियाजा आज पूरे देश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। सरकार ब्लैकमनी का मुद्दा पिटते देख कैशलेस पर शिफ्ट हो गई है। यदि जानकारों की मानें तो कैशलैस के लिए नोटबंदी की जरूरत नहीं थी। केन्द्र सरकार द्वारा अब छः महीने तक भारत की जनता को कैशलेस इकॉनामी पर बेवकूफ बनाया जायेगा क्योकि कालेधन और नोट बंदी का मुद्दा फेल हो कर जुमला साबित हो गया।

“ब्लैक मनी” का जूमला पुराना हुआ, अब नया नारा है “कैशलैस”। आप को पता है क्यों?  देश के एक प्रसिद्ध अखबार में छपी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 30 नवम्बर तक बैंकों में करीब १२ लाख करोड़ के पुराने 500 और 1000 के नोट आ चुके हैं।  ये पूरी उम्मीद है कि 30 दिसम्बर की सीमा तक बाकी के 3 लाख करोड़ भी आ जायेंगे।  मतलब , 15 लाख करोड़ के पूरे 500 और 1000 के नोट वापस।  इसका मतलब ये हुआ कि ” ब्लैक मनी” 500 और 1000 के नोट में था ही नहीं।  समझदार लोग पहले ही उसे किसी और रूप ( ज़मीन, सोना, डायमंड ) में बदल चुके हैं।  शायद, इसलिए नोट जमा करने की समय सीमा अचानक से घटा दी गयी और मोदी सरकार जो सोच रही थी कि जो नोट रिकवर नहीं होंगे उसे काला धन मान के सरकार के प्रॉफिट में जोड़ देंगे, उसका ये प्लान फेल हो गया।

ये भी याद रखना है कि नए नोट छपने का खर्चा करीब 1.28 लाख करोड़ तक जाएगा।  मतलब खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोड़ा बारह आना।  जैसे जेटली जी कल कह ही चुके हैं कि ये समस्या शायद 3 महीने तक खिंचे।  तो मतलब पहले 2- 3 दिन की परेशानी बनी 50 दिन , लेकिन अब 50 दिन की जगह 3 महीने, लेकिन एक्सपर्ट की राय माने तो पूरे नोट छपने में करीब 6 महीने लगेंगे और इकोनोमी रिकवर करने में सालों।  लोगों की परेशानी, बीमारी , गरीबी, पैसे की कमी से बच्चे, बूढों, रोगियों का मरना, मजदूर , किराने वालों का नुकसान , वो सब तो खैर ” एक छोटी सी असुविधा” है ही।  तो मोदी सरकार समझ गयी है कि हमेशा की तरह ” ब्लैक मनी” भी एक जुमला ही निकला और बहुत ज़ल्द पब्लिक ये समझ जायेगी, भले ही सरकारी भोंपू मीडिया इसे दिखाए या न दिखाए।  तो नया जुमला फेंका गया ” हो जाओ कैशलेस”  मतलब किस किस्म का भद्दा मज़ाक है ये! जिस देश में क्रेडिट कार्ड सिर्फ 2 % लोगों के पास है, खाते सिर्फ आधी जनसंख्या के पास है, अंग्रेजी सबकी भाषा नहीं है, जिन गाँवों में एटीएम तो क्या बैंक्स भी नहीं पहुंचे, आप उनसे कह रहे हो ” हो जाओ कैशलेस” संवेदनहीनता की भी कोई सीमा होती है।

अरे जो होना होता है, वो हो जाता है, उसके लिए ज़बरदस्ती नहीं करनी पड़ती।  राजीव गाँधी का सपना था घर-घर टीवी लाना। उन्होंने रामानंद सागर और बी आरचोपड़ा को बुला कर ” रामायण” और ” महाभारत” टीवी पर प्रसारित करने का प्लान बनाया और घर-घर टीवी हो गया।  कंप्यूटर आना था, आ गया।  नरसिंहराव, मनमोहन सिंह को इंडिया की खिड़कियाँ , दरवाज़े खोलने थे, उन्होंने खोल दिए और देश हमेशा के लिए बदल कर हमें एक ग्लोबल संस्कृति का हिस्सा बना दिया।  करने वाले पिछले 10 साल से कैशलेस हैं और इन्टरनेट बैंकिंग कर रहे हैं उन्हें मोदी की सलाह की ज़रुरत नहीं।  लेकिन कैश को फ्रीज कर के लोगों को मजबूर कर के, आप लोगों को अपग्रेड नहीं बल्कि तानाशही का मुजाहिरा पेश कर रहे हैं, लेकिन जैसे कि शुरू में कहा, शायद ” ब्लैक मनी” का मुद्दा हाथ से जाने के बाद अब मोदी सरकार के पास ” हो जाओ कैशलेस” नारा ही बचा। आखिरकार 6 महीने लोगों को गुमराह करना है, मजबूरी है।

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