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चार वर्ष बाद भी हरे हैं आपदा के जख्म

देहरादून। वर्ष 2013 में उत्तराखंड में हुई भीषण तबाही को भला कौन भुला सकता है। ये वो मंज़र था जिसने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। ताश के पत्तों की तरह ढहते हुए मकान देखकर हर किसी की रूह कांप उठी थी। आसमानी आफत ने बाढ़ की शक्ल में विकराल रूप लिया था जिस सैलाब में सब कुछ बह गया था और कई जिंदगियां काल के गाल में समा गई थीं। इस भीषण आपदा को आज पूरे चार वर्ष हो चुके हैं किंतु आज भी आपदा के वो जख्म भरे नहीं हैं। भले ही उत्तराखंड एक बार फिर से आगे बढ़ चला हो मगर आपदा की कड़वी यादें आज भी प्रत्येक उत्तराखंडी के जेहन में जिंदा हैं।

चारों तरफ हाहाकार और चीख पुकारें। जिसे देखो उसकी जुबान पर बस था तो ये ही जिक्र। उत्तराखंड के क्या पूरे देश के इतिहास में इससे बुरा दिन क्या होगा। चार वर्ष पूर्व का वो दिन शायद ही लोग कभी भूल पाएं जिसको सुनकर और याद करते ही लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं। उत्तराखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा सहित पूरे देश को भी अपनी चपेट में ले लिया था।

जिसको लेकर प्रदेश ही नहीं अपितु मैदानी क्षेत्रों में भी त्राहि-त्राहि मचाकर सबके दिलों में एक डर सा बना हुआ था। केदार घाटी में आई इस त्रासदी से आज तक भी लोग उभर नहीं पा रहे हैं। लोगों के दिलों में आज भी वह दृश्य किसी भयानक मंजर से कम नहीं है। न जाने कितने घर उजड़ गए, कितनी महिलाओं की मांग सुनी हो गई और न जाने कितनी माताओं के लाल उनसे बिझड़ गए।

चहुंओर महीने भर तक त्राहिमाम-त्राहिमाम होता रहा, इस आपदा से पीड़ित लोगों को बाहर निकालने के शासन प्रशासन की ओर से लाख प्रयास किए गए। लेकिन फिर भी उस दृश्य को भुला पाना किसी के लिए भी आसान काम नहीं है। केदार घाटी के लोग आज भी उस त्रासदी को लेकर डरे और सहमें से रहते हैं, और दुआ करते है कि ईश्वर ऐसा मंजर फिर से न दिखाए।

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