देओल खानदान की तीसरी पीढ़ी की बॉलीवुड में दस्तक, जानिए कैसी है फ़िल्म
मुंबई। देओल खानदान की तीसरी पीढ़ी इस फिल्म से बॉलीवुड में दस्तक दे रही है। देओल्स की तरह दर्शकों को भी बेसब्री से फिल्म के हीरो करण देओल का इंतजार था। देओल्स अपनी आपसी बॉन्डिंग और इमोशंस के लिए मशहूर हैं। परिवार के मुखिया धर्मेंद्र कई मौकों पर अपने जज्बात जाहिर करने से नहीं रोक पाते हैं। फिल्म में अपने किरदारों की भी खूबी और ताकत डायरेक्टर सनी देओल ने भावनाओं और मासूमियत को बनाया है।
कहानी के अनुसार करण सहगल मनाली में मशहूर ट्रेकिंग कंपनी का मालिक है। बफीर्ले तूफान में वह अपने मॉम डैड को बहुुत पहले खो चुका है। बहरहाल, दिल्ली की वीडियो ब्लॉगर सहर सेठी की वहां एक एडवेंचर ट्रिप प्लान होती है। सहर पहले से ही वीरेन नारंग के साथ रिलेशनशिप में हैं जो खात्मे की कगार पर है।
बहरहाल सहर की ट्रिप करण की ही कैंप उजी कंपनी में होती है। दोनों उलट स्वभाव के हैं। फिर भी शुरूआती नोंक-झोंक के बावजूद मनाली और लाहौल स्पीति की खूबसूरत वादियों में खासा वक्त गुजारने के चलते दोनों एक-दूजे को चाहने लगते हैं।
फिर कहानी में आता है लव ट्राएंगल और फैमिली ड्रामा। वीरेन बर्दाश्त नहीं कर पाता कि सहर उसे छोड़ दे। वह साजिशों का जाल फैलाता है। फिर करण और सहर एक-दूजे के हो पाते हैं कि नहीं, फिल्म इसी को लेकर है। कहानी सरल और सीधी रखी गई है। ज्यादा मोड़ नहीं आते उसमें। किरदारों को अधिक परतदार नहीं बनाया गया है। मौजूदा पीढ़ी मोहब्बत पाने की खातिर कितनी हदें पार कर सकती है, उस लीक से कहानी हटती नहीं।
एहसास को गाढ़ा करने के लिए कहानी से ज्यादा गीत संगीत पर ध्यान दिया गया है। सिद्धार्थ गरिमा ने गाने लिखे हैं। संगीत के मोर्चे पर सचेत, परंपरा, अरिजीत सिंह, ऋषि रिच नेमिठास से भरा म्यूजिकल एल्बम दिया है। मनाली, लाहौल स्पीति जैसे खूबसूरत लोकेशन भी फिल्म में बड़े हिस्से में मौजूद हैं। वे भी फिल्म को काफी हद तक अपने कंधों से सहारा देते हैं। हालांकि गानों की लम्बाई और खूबसूरत वादियों में किरदारों के बड़े पार्ट के होने चलते फिल्म तकरीबन 152 मिनट लंबी हो गई है।
कई साल पहले बड़जात्या ने विवाह बनाई थी। उसकी कहानी भी सरल थी, पर असरदार राइटिंग के चलते वहां किरदारों ने इमोशन का खूबसूरत तिलिस्म गढ़ा था। यहां वह महरूम है। नायक के रोल को करण देओल ने भरपूर मासूमियत मुहैया करवाई है। इतनी ज्यादा कि गुस्से वाले भाव आते हैं तो वहां भी उनके चेहरे पर प्रचंड नरमी ही दिखी है। उनकी पहली फिल्म है। लिहाजा परफॉरमेंस के मामले में उन पर नरमी बरती जा सकती है। वरना कई सीक्वेंसेज में उनके चेहरे के हाव भाव और संवादों में खासा मिसमैच है। चेहरा सपाट रह गया है। वे चॉकलेटी जरूर लगे हैं। उनका लिटमस टेस्ट आगे की फिल्मों से होगा।
नायिका की भूमिका में सहर बाम्बा ने जरूर इस मोर्चे पर उनसे बाजी मारी है। किरदार के चुलबुलेपन को उन्होंने शिद्दत से पेश तो किया है। विलेन वीरेन नांरग के रोल में आकाश आहूजा का अटैम्प्ट ठीक सा है। बाकी सचिन खेडे़कर, कामिनी खन्ना से लेकर विलेन मेघना मलिक तक के टैलेंट का भरपूर उपयोग नहीं हो पाया है।
रेटिंग | 2.5/5 |
स्टारकास्ट | करण देओल, सहर बाम्बा |
निर्देशक | सनी देओल |
निर्माता | जी स्टूडियो, सनी साउंड्स |
म्यूजिक | तनिष्क बागची, सचेत, परम्परा, राजू सिंह |
जॉनर | रोमांटिक |
अवधि | 136 मिनट |