जुलाई में लौटेगा अल नीनो! दुनियाभर में तबाही मचाएगी प्रचंड गर्मी, पढ़िए पूरी खबर
अल नीनो के कारण दक्षिण अमेरिका के पास प्रशांत महासागर की सतह के जल का ताप सामान्य से ज्यादा हो जाता है और इसे मॉनसून की हवाओं के कमजोर पड़ने तथा भारत में कम बारिश के साथ जोड़ कर देखा जाता है।
नई दिल्ली। आने वाले जुलाई महीने में पूरी दुनिया को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। दुनियाभर में अल नीनो (El Nino) के असर से तापमान में तेजी के संकेत हैं। दरअसल, भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के गर्म होने की संभावना बढ़ रही है जिसे ‘अल नीनो’ गतिविधि कहा जाता है और इसका संबंध उच्च वैश्विक तापमान से है। इसका असर भारत सहित पूरी दुनिया पर पड़ेगा। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अल नीनो की एक बार फिर वापसी के कारण होगा। अल नीनो के कारण वैश्विक तापमान में रिकॉर्ड बढ़ोतरी होगी। भारत में मानसून पर भी इसका असर पड़ने की संभावना है।
भारत में भी अल नीनो को लेकर बढ़ी चिंता
संयुक्त राष्ट्र (UN) के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने बताया है कि अल नीनो अब जुलाई के अंत तक आ सकता है। डब्ल्यूएमओ ने यह भी कहा है कि जुलाई में इसके आने की संभावना 60 प्रतिशत और सितंबर के अंत तक 80 प्रतिशत संभावना है। भारत में मॉनसून के दौरान अल नीनो की संभावना 70 फीसदी तक है। डब्ल्यूएमओ के क्षेत्रीय जलवायु पूर्वानुमान सेवा प्रभाग के प्रमुख विल्फ्रान मौफौमा ओकिया ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा में संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह दुनिया भर में मौसम और जलवायु की प्रणाली को बदल देगा।’’’ इसके साथ ही अब तक के सबसे लंबी ‘ला नीना’ गतिविधि भी समाप्त हो जाएगी। वर्ष 1950 के बाद ऐसा तीसरी बार हुआ है, जब ‘ला नीना’ गतिविधि लगातार तीसरे वर्ष देखी गई हो। ‘ला नीना’ का अर्थ समुद्र की सतह के तापमान के सामान्य से अधिक ठंडा होने का चरण है।
मौसम पर अल नीनो का क्या असर पड़ता है?
- अल नीनो के प्रभाव से भारत और ऑस्ट्रेलिया में सूखे जैसी स्थिति का जोखिम ज्यादा।
- अल नीनो का असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है, जिसके कारण बारिश, ठंड, गर्मी सब में अंतर दिखाई देता है।
- समुद्र की सतह में गर्मी बढ़ने से जलीय जीवों के जीवन को सबसे बड़ी क्षति होती है।
- अल नीनो के प्रभाव के कारण फसलों की पैदावार में भी गिरावट दर्ज की जाती रही है।
- तापमान में तेजी के साथ बारिश का संकट होने से स्थितियां तेजी से बिगड़ने लगती हैं।
अल नीनो के कारण दक्षिण अमेरिका के पास प्रशांत महासागर की सतह के जल का ताप सामान्य से ज्यादा हो जाता है और इसे मॉनसून की हवाओं के कमजोर पड़ने तथा भारत में कम बारिश के साथ जोड़ कर देखा जाता है। लगातार तीन बार ‘ला नीना’ के प्रभाव के बाद इस साल अल नीनो की स्थिति बनेगी। ला नीना, अल नीनो की विपरीत स्थिति है।
IMD के महानिदेशक ने अल नीनो के प्रभाव के बारे में क्या बताया?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने पिछले सप्ताह कहा था कि मॉनसून के दौरान अल नीनो की स्थिति बन सकती है और इसका प्रभाव मॉनसून के दूसरे भाग में महसूस किया जा सकता है। महापात्रा ने कहा था कि 1951-2022 के बीच जितने साल भी अल नीनो सक्रिय रहा है, वे सभी वर्ष मॉनसून के लिहाज़ से खराब नहीं थे। उन्होंने कहा कि इन वर्षों में अल नीनो के प्रभाव वाले 15 साल थे और उनमें से 6 में ‘सामान्य’ से लेकर ‘सामान्य से अधिक’ बारिश हुई।