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पूर्व मुख्यमंत्रियों को भरना होगा बाजार दर पर किराया, हाईकोर्ट ने दिया आदेश

देहरादून/नैनीताल। 23 मार्च को माननीय हाईकोर्ट उत्तराखंड ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के लगभग 12 करोड़ रुपयों के बकाया के मामले पर उत्तराखंड सरकार द्वारा पारित एक्ट को अल्ट्रा वायरस यानि निरस्त करने पर निर्णय सुरक्षित रखा था, जिसे आज सार्वजानिक कर दिया गया।

राजनीतिक जानकारों के अनुसार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों में सबसे बड़ा झटका रमेश पोखरियाल को लग सकता है क्योंकि उनके नामांकन पर सबसे बड़ी आपत्ति यही की गयी थी उनके ऊपर राज्य सरकार का 2.5 करोड़ रुपये बकाया है व चुनाव लड़ने के हकदार नहीं है।

आपको बता दे माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2016 में फैसला दिया था की पूर्व मुख्यमंत्रियों को व उनके स्टाफ आदि को वेतन, भत्ते, आवास, किराया व सुरक्षा नहीं दी जा सकती और यदि वे इसका उपयोग कर रहे है तो उनको बाज़ारी दर पर भुगतान करना होगा। इसके तुरंत बाद ही सरकार हरकत में आयी थी व पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ लगभग कोर्ट में 12 करोड़ की बकाया राशि निकालते हुए कोर्ट को रुलक संस्था की याचिका पर शपथ पत्र दाखिल किया था।

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आपको बता दे की सामाजिक संस्था रुलक द्वारा पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ याचिका दायर की गयी थी व उनसे राज्यहित का पैसा वसूलने की याचिका माननीय उच्च न्यायलय उत्तराखंड में दाखिल की थी। जिसपर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सारा किराया बाजार दर पर जमा करवाने का निर्णय दिया था। जिसे पूर्व मुख्यमंत्रियों ने राज्य सरकार की कैबिनेट व फिर विधानसभा सत्र में माफ़ करवा दिया था और इस पर राज्य सरकार एक जीओ जारी करते हुए एक्ट पारित किया था, जिसे पुनः रुलक संस्था ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और आज उस पर फैसला आ गया है।

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इस पूरे प्रकरण के दौरान लोकसभा चुनाव भी 2019 में हो रहे थे। हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से भाजपा से लोकप्रिय नेता व भाजपा हाई कमान में मजबूत पकड़ बना चुके मनीष वर्मा ने भी टिकट की दावेदारी पार्टी हाई कमान को की थी पर टिकट न मिलने पर बाहुबली मनीष वर्मा भाजपा के बागी उम्मीदवार के रूप में नामांकन करने पहुंच गए व नामांकन की आपत्ति के दौरान रमेश पोखरियाल के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज करवाई कि रमेश पोखरियाल पर 2.5 करोड़ रुपये राज्य सरकार की देनदारी है। जब तक सरकारी देनदारी का भुगतान रमेश पोखरियाल नहीं कर देते और राज्य सरकार से “अदेयता प्रमाण पत्र” नहीं ले आते तब तक वो चुनाव नहीं लड़ सकते।

उन्होंने साथ ही यह यह भी आपत्ति दर्ज करवाई कि रमेश पोखरियाल ने राज्य सरकार से आवंटित भूमि को अपने शपथ पत्र में नहीं दर्शाया व उनकी शिक्षा की व डॉक्टरेट की डिग्रियों को भी चैलेंज करते हुए भारी खामिया भी दर्ज करवाई पर निर्वाचन अधिकारी ने सरकार के दबाव में आपत्ति ख़ारिज कर दी। इसके साथ ही उनके डॉ. बोलकर शपथ लेने पर भी याचिका राष्ट्रपति के यहाँ दायर कि हुई है जबकि उनकी डॉक्टरेट की डिग्री पर गूगल पर खबरे भरी हुई है।

रमेश पोखरियाल 'निशंक' (बाएं) एवँ मनीष वर्मा (दाएं) फाइल फ़ोटो
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ (बाएं) एवँ मनीष वर्मा (दाएं) फाइल फ़ोटो

मनीष वर्मा ने चुनाव के बाद निर्धारित समय में चुनाव याचिका दाखिल कि और कुछ समय पूर्व ही उस याचिका पर मत पेटिया माननीय उच्च न्यायलय के आदेश पर देहरादून रायपुर से हरिद्वार शिफ्ट करवाते हुए सुरक्षा में रखवाई गयी व इस दौरान भी रायपुर व हरिद्वार में सुरक्षा में रखी पेटियों कि चाबी नहीं मिली व दूसरी चाबियां मंगवाई गयी। मनीष वर्मा को इस दौरान सरकार द्वारा ADM देहरादून के नेतृत्व में भारी सुरक्षा दी गयी।

आज माननीय उच्च न्यायलय का फैसला आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। साथ ही रमेश पोखरियाल पर ऐसे में भारी मुसीबत में पड़ सकते हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार उन्हें सांसद व मंत्री पद दोनों से हाथ धोना पड़ सकता है व 3.5 करोड़ रुपये भी जमा करवाने होंगे। वहीं चुनाव याचिका के नियमों के अनुसार रमेश पोखरियाल को पड़े वोट मनीष वर्मा के हो जायेंगे।

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