हर साल फैलता है चमकी बुखार जैसा वायरस, अबतक बना हुआ है रहस्य
नई दिल्ली। बिहार में जो बुखार 140 से ज्यादा बच्चों की जान ले चुका है, उसके कारणों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है। बिहार में इसे चमकी या नवका बुखार कहा जा रहा है, क्योंकि यह बुखार आने पर बच्चों को झटके आने लगते हैं। 1995 में पहली बार यह बुखार सामने आया था। अब बिहार समेत 18 राज्यों में इस तरह के बुखार के मामले हर साल सामने आते हैं, लेकिन ये किस वायरस से फैल रहा है, यह पता लगाया जाना अभी बाकी है।
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में इसके मामले हर साल सामने आते हैं। इंदौर स्थित मध्यप्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ वीपी पांडे बताते हैं कि गर्मी के समय हर साल यह बीमारी फैलती है, लेकिन अभी तक इस पुष्टि नहीं हो सकी है कि आखिर यह वायरस कौन-सा है और किस वजह से फैल रहा है?
एईएससिर्फ लक्षण है:
डॉ. पांडे बताते हैं कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) इस बुखार का सिर्फ एक लक्षण है। यह तीन से पांच दिन आने वाला बुखार है। जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर होती है, उन्हें यह अटैक करता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो तो इससे उबरा जा सकता है, लेकिन यह अच्छी नहीं है तो कई मामलों में जान भी नहीं बच पाती। पिछले साल देश के 18 राज्यों में इसके 10,485 मामले सामने आए। इसमें से 632 मामलों में मौत हो गई। भारत में इस बुखार से होने वाली मौत की दर 6 प्रतिशत है, लेकिन बच्चों के मामले में यह 25 प्रतिशत तक पहुंच जाती है।
क्या है एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम?
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) इस खतरनाक बुखार का एक लक्षण है। यह वायरस सामान्यत: 1 से 10 साल की उम्र के बच्चों की सेहत पर हमला करता है। यह सीधे दिमाग पर असर डालता है। यह भ्रम, भटकाव जैसे लक्षणों के साथ मरीज को कोमा तक भी पहुंचा सकता है। यह बीमारी बैक्टीरिया, फंगस, परजीवी, स्पाइरोकेटस, केमिकल्स, टॉक्सिंस के जरिए लोगों को अपना शिकार बना सकती है।
जापानीज इंसेफेलाइटिस वायरस भी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का मुख्य कारक है। लोग निपाह वायरस, जीका वायरस के जरिए भी इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का शिकार हो जाते हैं। हर्पीस सिम्पलेक्स वायरस, इंफ्लुएंजा ए वायरस, वेस्ट नील वायरस, चांदीपुरा वायरस, मम्पस, डेंगू, पारवो वायरस बी 4 आदि भी ऐसे वायरस हैं, जिनके चलते व्यक्ति इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का शिकार हो जाता है।
क्या है जापानीज इंसेफेलाइटिस वायरस:
जापानीज इंसेफेलाइटिस वायरस डेंगू, चिकनगुनिया, येलो फीवर की श्रेणी में आता है। बारिश के मौसम में यह तेजी से फैलता है। बच्चे या 65 वर्ष के ऊपर के लोग इसकी चपेट में ज्यादा आते हैं। इसके होने की मुख्य वजह रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना है। यह क्यूलेक्स श्रेणी के मच्छर के काटने की वजह से होता है। तेज बुखार, सिर दर्द, गर्दन और पीठ में भारीपन, उल्टी आना, भ्रमित होना इसके प्रमुख लक्षण हैं। गंभीर स्थिति में पहुंचने पर व्यक्ति हिंसक हो सकता है। पैरालिसिस और कोमा में भी जा सकता है।
कैसे होता है इसका इलाज:
जो बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होते हैं, उन्हें आईसीयू में रखना होता है। डॉक्टर्स ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट, ब्रीथिंग और ब्रेन की जरूरी जांच करते हैं। कुछ केस में एंटीवायरल ड्रग दिए जाते हैं। एंटी इंफ्लेमेंट्री ड्रग भी दिए जाते हैं।
भारत के अलावा 24 देश भी प्रभावित:
इस बुखार से सिर्फ भारत में ही जानें नहीं जा रहीं, बल्कि दक्षिण-पश्चिम एशिया और पश्चिमी प्रशांत के 24 देश भी इससे प्रभावित हैं। डब्ल्यूएचओ की मानें तो इन देशों के 300 करोड़ लोगों पर इसके इंफेक्शन का खतरा है। राष्ट्रीय वैक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अनुसार 2011 से अब तक यानी भारत में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम और जैपेनीज इंसेफेलाइटिस के 91968 मामले सामने आए हैं। इनमें से 11254 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से 99% पीड़ित 15 साल से कम उम्र के बच्चे थे।
इससे कैसे बचें:
गंदगी से दूर रहें। बच्चों की सफाई का खासतौर पर ध्यान रखें। खाना खाने के पहले और बाद में अच्छे से हाथ धोएं। साफ पानी पिएं। बच्चों के नाखून बढ़ने न दें। ताजा खाना ही खाएं। बाहर का खाना अवॉइड करें।