हरीश रावत के हाथों ही संभव है उत्तराखण्ड का विकास
देहरादून। मुख्यमंत्री हरीश रावत पहले ऐसा व्यक्ति है, जो खुद को गाढ गदेारों का बेटा कहते हैं, वो सिर्फ इतना कहकर ही इतिश्री नहीं करते वो राज्य के विकास को अपना प्रथम कर्तव्य समझते हैं। समय ने इस कदर उनकी परीक्षा ली कि वो राज्य के पहले ऐसे मुखिया है, जिन्होंने खुद को चारों ओर संकटों से घेरे जाने के बाद भी बाहर निकाला है। जिससें राज्य को एक नई विकास गति मिली है। उनके द्वारा राज्य को देश का सर्वाधिक वीरता अनुदान राशि देने वालों की सूची में शीर्ष स्थान दिया गया। इतना ही नहीं उत्तराखण्ड देश में भर्ती पूर्व प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करने वाला पहला प्रदेश है। विभिन्न युद्धों और सीमान्त झड़पों और आंतरिक सुरक्षा में शहीद हुये सैनिकों और अर्द्धसैनिक बलों की विधवाओं, आश्रितों को एकमुश्त अनुग्रह अनुदान निश्चित किया गया है। उत्तराखण्ड एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां ब्लाक प्रतिनिधियों की नियुक्ति कर उन्हें मानदेय दिया जा रहा है। इनके मानदेय को चार हजार से बढ़ाकर छह हजार रूपयें कर दिया गया है। साथ ही अर्द्धसैनिक बलों को भूतपूर्व सैनिकों हेतु अलग से विभागीय ढ़ांचा तैयार किया। इसके लिए 2 करोड़ रूपयें की धनराशि भी जारी की गई है। वहीं उपनल में केवल सैनिक आश्रितों को ही सेवा का मौका दिया जा रहा है। हरीश रावत की विकास नीति से जहंा विपक्षी घबरा रहें वहीं जनता को अपने सच्चें सेवक पर पूरा विश्वास हो चला हैं, जिसका परिणाम ये है कि केंद्र सरकार अपने दिग्गज नेताओं को उत्तराखण्ड का रूख करने को मजबूर हो रही है।