कहीं “खतरे की घंटी” ना बन जाएं “जिओ की ये घंटी”
नई दिल्ली। क्या रिलायंस जिओ की घंटियां सरकार, बैंकों और ग्राहकों के लिए खतरे की घंटियां बनने वाली हैं? रिलायंस जिओ के आने से बाज़ार में बदलाव आएगा, यह अनुमान तो कइयों ने लगाया था, लेकिन शायद ही किसी को अंदाजा रहा हो कि यह बदलाव इतना तूफानी होगा।
भारतीय टेलिकॉम नियामक (टीआरएआई) द्वारा ज़ारी आंकड़ों के हिसाब से मालूम होता है कि रिलायंस जिओ के देश भर में दस प्रतिशत ग्राहक हो गए हैं। एक साल से भी कम समय में इतनी बड़ी हिस्सेदारी यकीनन क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। इसके पीछे कई कारण हैं। जहां अन्य टेलिकॉम कंपनियां के आधे-अधूरे नेटवर्क, सुस्त डाटा स्पीड और कॉल ड्रॉप्स ने देश में इतना हाहाकर मचा दिया था कि तंग आकर सरकार और न्यायालय ने कई बार कंपनियों के खिलाफ कड़े आदेश दिए थे, वहीँ रिलायंस जिओ ने काफ़ी कम समय में 120000 टावर्स का जाल बिछाकर एक तेज़ और साफ़ सुथरा नेटवर्क दिया है। जहां अन्य टेलिकॉम कंपनियां इस धंधे को नुकसान का सौदा बताकर ऊंचे दामों पर कॉल और डाटा ग्राहकों को दे रही थीं, वही रिलायंस जिओ ने शुरुआत में ये दोनों फ्री और बाद में सस्ती दरों पर ग्राहकों के लिए उपलब्ध करवाए हैं।
एक साल पहले एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में बिरला समूह के चेयरमैन कुमारमंगलम बिरला ने कहा था कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के टेलिकॉम क्षेत्र में आने से बाज़ार में काफी बदलाव आएगा। तब शायद ही किसी ने अंदाज़ा लगाया होगा कि बदलाव नहीं तूफ़ान आने वाला है। लेकिन मुकेश अंबानी इस बात के लिए जाने जाते रहे हैं। 2003 में जब मुकेश रिलायंस इन्फोकॉम( अब रिलायंस कम्युनिकेशन) के कर्ता-धर्ता थे तब भी वे ऐसी ही ‘क्रांति’ लाये थे जब उन्होंने ग्राहकों को कॉल की सेवाएं फ्री में दी थीं। मजबूर होकर दूसरी कंपनियों को भी अपने दाम गिराने पड़े थे और इसे देश में टेलिकॉम सेवाओं सस्ती हुईं और ग्राहकों को चौतरफा फायदा हुआ था।
2003 की तरह ही पिछले साल जब ‘जिओ’ ने कॉल और डाटा ग्राहकों को मुफ्त में उपलब्ध करवाया तब टेलिकॉम कंपनियों में हलचल मच गयी। एयरटेल, वोडाफोन सरीखी कंपनियों ने टीआरएआई में काफी हो-हल्ला मचाया पर ‘जिओ’ को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। रिलायंस जिओ ने सस्ती दरों पर ग्राहकों को सेवाएं देकर इन कंपनियों के पसीने छुड़ा दिए हैं। इसके बाद से कुछ कंपनियों जैसे कि रिलायंस कम्युनिकेशन की तो सांस ही फूल गयी है।
क़र्ज़ के संकट से जूझ रही रिलायंस कम्युनिकेशन पर दोहरी मार पड़ी है। जहां एक तरफ़ उसकी आय घटी है, वहीँ दूसरी तरफ क़र्ज़ और ब्याज के संकट ने उसके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। कंपनी में काम करने वालों के मुताबिक इसके कर्मचारियों की तन्ख्वाह तक समय पर नहीं आ रही है। कमोबेश हर टेलिकॉम कंपनी का यही हाल है। ये टेलिकॉम सेक्टर के लिए अच्छी खबर नहीं है। जानने वाले मानते हैं कि आने वाले दिनों में टेलिकॉम कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों, सरकार, बैंकों और यहां तक कि ग्राहकों को भी इससे बड़ा नुकसान होने वाला है।
टेलिकॉम कंपनियों में छटनी का डर:
आज टेलिकॉम सेक्टर में गला-काट प्रतिस्पर्धा से कंपनियों के मुनाफ़े घटे हैं। इसकी वजह से वे विलय करने पर मजबूर हो गयी हैं। वोडाफोन-आइडिया, रिलायंस कम्युनिकेशन-एमटीएस-ऐयरसेल और हाल ही में एयरटेल और युनीनोर के विलय की ख़बरें इसी का परिणाम हैं। इसके चलते इन कंपनियों में काम करने वाले हजारों लोगों के रोज़गार पर खतरे की तलवार लटक गयी है। अभी हाल ही में रिलायंस कम्युनिकेशन ने कई हज़ार कर्मचारियों की छटनी की है। कंपनियों को गिरते हुए मुनाफे की वजह से बढते हुए नुकसान को रोकने के लिए यह कदम सबसे कारगर नज़र आता है। इसका असर अपरोक्ष रूप से जुड़ी हुई कंपनियों और वितरकों के स्टाफ़ पर भी पड़ेगा।
सरकार की आय में गिरावट:
स्पेक्ट्रम और लाइसेंस फ़ीस से सरकार को हर तिमाही एक नियमित आय होती है। मेट्रो और बड़े टेलिकॉम सर्किल (केटेगरी ‘ए’) में ये एडजस्टेड ग्रॉस रेवन्यू या एजीआर का 10 फीसदी है, केटेगरी ‘बी’ में आठ फीसदी और केटेगरी ‘सी’ में छह फीसदी। औसतन ये 8.5 फीसदी है। अब समझने वाली बात यह है कि अगर टेलिकॉम कंपनियों की आय बढती है तो सरकार की उसमें हिस्सेदारी बढ जाती है। जिओ के प्लान्स आने के बाद, 2016-17 की आखिरी तिमाही में सरकार को इससे होने वाली कमाई में 12 प्रतिशत की गिरावट आई है। रुपये में इसे समझे तो सरकार के पास करीब 680 करोड़ रुपये कम आये हैं।
इसी प्रकार स्पेक्ट्रम चार्ज से होने वाली आय में भी तकरीबन 280 करोड़ की गिरावट देखी गई है। स्पेक्ट्रम चार्ज एजीआर का औसतन 3.5 फीसदी होता है। कुल मिलाकर सरकार को 960 करोड़ का नुकसान हुआ है। जिस तरह से जिओ ने मार्केट पर पकड़ बनायी है उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार को होने वाली आय में रिलायंस जिओ की हिस्सेदारी तो बढ़ेगी पर सरकार को इस क्षेत्र से होने वाली कुल आय कम हो जायेगी। रिलायंस जिओ के पास डब्लूबीए (वायरलेस ब्रॉडबैंड एक्सेस) लाइसेंस है जिसके तहत स्पेक्ट्रम चार्ज सिर्फ एक फीसदी ही है। आगे, जिओ के फ्री प्लान्स की वजह से ग्राहकों से होने वाला औसत रेवेन्यू 155 रुपये प्रति ग्राहक से घटकर 120 होने का अंदेशा है जो सरकार की कमाई को और कम देगा।
वित्तीय संस्थानों और बैंकों को ख़तरा:
टेलिकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर का खेल है जिसमे पैसा बहुत लगता है। हाल ही में देश के सबसे बड़े बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, ने सरकार को आगाह किया है कि टेलिकॉम सेक्टर के बदलते हुए हालातों की वजह से बैंकों द्वारा कंपनियों को दिया हुए क़र्ज़ मुश्किल में नज़र आ रहा है।आंकड़ों के मुताबिक़ सारे बैंकों का टेलिकॉम कंपनियों पर करीब चार लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ है। एसबीआई की चेयरमैन अरुंधती भट्टाचार्य के मुताबिक इसमें से सबसे बड़ी भागीदारी उनके बैंक की ही है। टेलिकॉम सचिव अरुणा सुंदराराजन को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि ‘नए प्लेयर्स के आने के बाद से टेलिकॉम कंपनियों की हालत काफी ख़राब हो चुकी है जिससे उनकी बैलेंस शीट्स पर दवाब आ गया है।’
जाहिर है ‘नए प्लेयर्स’ से उनका इशारा रिलायंस जिओ की तरफ ही है. वे आगे लिखती हैं – ‘कुछ टेलिकॉम कंपनियां इस दवाब को शायद न झेल पाएं। सारी कंपनियों का सालाना एबिडेटा 65000 करोड़ रुपये है जिससे चार लाख करोड़ रुपये के ब्याज़ की भरपाई और मूल रकम की वसूली पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।’ हाल ही में अनिल अंबानी द्वारा संचालित रिलायंस कम्युनिकेशन ने वित्तीय संस्थानों से अपील की है कि उनकी कंपनी की कर्ज़ और ब्याज़ चुकाने की समय-सीमा में कुछ ढील दी जाए। उधर टेलिकॉम मंत्री मनोज सिन्हा ने कंपनियों को सलाह दी है कि वे बैंकों और वित्तीय संस्थानों से बातचीत करके इस संकट का हल ढूंढ़ें।
‘जिओ’ के मार्केट में कूदने के बाद एयरटेल जैसी मज़बूत कंपनी का भी मुनाफ़ा गिरा है। वोडाफ़ोन और आइडिया को भी नुकसान हुआ है। लेकिन रिलायंस कम्युनिकेशन का सबसे बुरा हाल है। उस पर कुल 45000 करोड़ रुपये का क़र्ज़ है। कंपनी के प्रेसिडेंट गुरदीप सिंह के मुताबिक़ कंपनी अपने टावर बिज़नेस को कनाडा की ब्रूकफ़ील्ड्स कंपनी को बेचकर और एयरसेल और एम्टीएस के साथ विलय पर 25000 करोड़ रुपये उगाह लेगी।’ कंपनी मुंबई स्थित अपने हेडक्वार्टर ‘धीरुभाई अंबानी नॉलेज सिटी’, और दिल्ली के दफ़्तर को बेचने का मन बना चुकी है। समस्या इस बात की है कि क्या उसे वक़्त रहते इनके सही दाम मिल पायेंगे? रिलायंस कम्युनिकेशन काफी सालों से अपना टावर बिज़नस बेचने की कोशिश कर रही है पर हर बार बात नहीं बनी।
ग्राहकों के लिए भी नुकसान:
एक समय पर देश के हर टेलिकॉम सर्किल में औसतन सात या आठ कंपनियां हुआ करती थीं। हिंदुस्तान का टेलिकॉम मार्केट सबसे ज़्यादा प्रतिस्पर्धा वाला मार्केट है।यह पहले ही दवाब में था जो रिलायंस जिओ के आने के बाद अब कई गुना बढ़ गया है। कंपनियों के विलय के बाद कुछ ही बड़ी कंपनियां रह जायेंगी जिसकी वजह से ग्राहकों के पास ज्यादा विकल्प नहीं रहेंगे। संभावना है कि इससे बाज़ार पर अघोषित एकाधिकार के हालात बन जाएं। इस सूरत में कॉल और डाटा दरों में कई गुना बढ़ोतरी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
2003 के और आज के हालातों में अब काफ़ी अंतर आ गया है। उस वक़्त टेलिकॉम कंपनियों पर इतना क़र्ज़ नहीं था, न ही उनके पास इतना बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर था। तब देश में टेलिकॉम घनत्व 10 फीसदी भी नहीं था। आज के देश में 100 करोड़ से ज्यादा ग्राहकों के पास मोबाइल फोन हैं। तब टेलिकॉम मार्केट तेज़ी से बढ़ रहा था अब उसकी रफ़्तार काफी कम हो गयी है। जानकारों के मुताबिक़ डाटा की वृद्धि शायद टेलिकॉम सेक्टर को बचा सके क्यूंकि फ़ोन अब कान से दूर होकर हाथ में आ गया है। तब होंठ हिलते थे, अब उंगलियां चलती हैं! कुल मिलाकर बात ये है कि आने वाला समय टेलिकॉम कंपनियों के लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण रहने वाला है, जो किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है।