अपनी आंखों के ईशारों पर जहरीले नागों को नचाता है ये युवा

रामनगर। “मैं जब किसी सांप को पहली बार देखता हूं तो दिल में एक अजीब सी हलचल पैदा होती है। मुझे लगता है कि जैसे वो सांप मुझसे ये कह रहा हो कि मुझे इन इंसानों से बचा लो नहीं तो ये लोग मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे।”
ये शब्द 18 साल के युवा अर्जुन कश्यप के हैं जो उत्तराखंड के रामनगर इलाके में रहने वाले लोगों के घरों से जहरीले सांप पकड़कर उन्हें घने जंगल में आज़ाद करते हैं। जिम कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व से सटे हुए इस इलाके में 19 फीट लंबे अजगर और 18 फीट लंबे फनधारी नागराज यानी किंग कोबरा जैसे ज़हरीले सांप पाए जाते हैं।
उत्तराखंड में पश्चिमी क्षेत्र के वन संरक्षक डॉक्टर पराग मधुकर बताते हैं, “तराई भांवर के क्षेत्र में बिग फोर नाम के चार तरह के ज़हरीले सांप पाए जाते हैं। इनमें कॉमन कोबरा, किंग कोबरा, रसेल वाइपर और क्रेट है। इसके अलावा तमाम तरह के बिना ज़हर वाले सांप पाए जाते हैं।”
“लेकिन आम जनमानस जानकारी के अभाव में हर सांप को ज़हरीला समझता है और इसके चलते लोगों में सांपों के प्रति डर बना रहता है।” डॉक्टर पराग मधुकर कहते हैं, “इस इलाके में हर साल मानसून के दौरान सांप काटने से मरने वालों की संख्या दर्जनों में होती है। इसके चलते लोगों द्वारा सांपों को मारे जाने की घटनाएं भी देखी जाती थीं लेकिन कश्यप परिवार की वजह से स्थिति में बदलाव आया है।”
सांपों के लिए झेला सामाजिक तिरस्कार
अर्जुन कश्यप उस परिवार से आते हैं जहां उनके घर के सभी लोग सांप पकड़ने में माहिर हैं। उनके पिता चंद्रसेन कश्यप एक लंबे समय से क्षेत्रीय वन विभाग को अपनी सेवाएं देते आए हैं ताकि स्थानिय स्तर पर लोगों में सांपों के प्रति डर ख़त्म हो सके।लेकिन इस मुहिम के चलते ये परिवार सामाजिक स्तर पर विरोध और तिरस्कार भी झेल चुका है। अर्जुन के पिता चंद्रसेन कहते हैं, “हम ये काम समाज और सांपों के हित में करते हैं। लेकिन इस काम के चलते मुझे ज़हरीला और मेरी बेटी को विष कन्या तक कहा गया।”
“आप बताइए हमारे समाज़ में सांप पकड़ने वाली किसी लड़की या जिसे विष कन्या कहा गया है, उसकी शादी होना आसान है क्या? लेकिन लोग हमारे काम को तरजीह नहीं देते।” अर्जुन खुद भी अपने बचपन में ये तिरस्कार झेल चुके हैं। वो बताते हैं कि अक्सर दोस्त और मोहल्ले वाले उन्हें सपेरा कहकर बुलाते थे लेकिन वह सपेरों का काम नहीं करते हैं। काफी छोटी उम्र से सामाजिक तिरस्कार झेलने के बाद भी अर्जुन कश्यप के मन से सांपों के प्रति मोहब्बत कम होती नहीं दिखाई देती।
हालांकि, वह अपने परिवार की आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए चित्रकारी और पेंटिंग करने का काम करते हैं। उनके मन में भी 18 साल के किसी दूसरे लड़के की तरह तमाम चिंताएं हैं लेकिन जैसे ही अर्जुन के फोन पर कहीं पर सांप दिखने की ख़बर आती है तो वह सबकुछ भूलकर उस जगह की ओर चल पड़ते हैं।
फ़्री में पकड़ते हैं ज़हरीले सांप
पांच साल की उम्र में पहला सांप पकड़ने वाले अर्जुन कश्यप रामनगर इलाके में एक तरह की आपातकालीन सेवा चलाते हैं और वो भी फ्री में। हमारी मौजूदगी में अर्जुन के मोबाइल पर एक फोन आता है कि रामनगर के टेड़ा गांव में एक सांप निकला है। फोन सुनते ही अर्जुन अपने भाई और पिता के साथ सांप पकड़ने निकल पड़ते हैं।
टेड़ा गांव का दृश्य कुछ इस तरह है कि सांप…सांप…सांप चिल्लाते हुए एक महिला अपने घर से तेज़ी से बाहर भागती है। इस महिला की दहशत भरी चीख सुनते ही गांव के तमाम लोग इस घर की और दौड़ पड़ते हैं जिनमें कई बच्चे, बूढ़े और जवान शामिल हैं। कुछ लोगों की आंखों में सांप देखने का कौतुहल झलकता है तो वहीं कुछ नौजवानों की आंखें सांप से निपटने के लिए लाठी डंडे तलाश करने लगती हैं।
कुछ लोगों के चेहरों पर सांप का डर दिखाई पड़ता है। देखते-देखते सभी लोग एक ऐसी भीड़ में बदल जाते हैं जो इस जहरीले सांप से निपटने के लिए उसे मारने में भी गुरेज़ नहीं करती। लेकिन अर्जुन के इस गांव में पहुंचते ही लोग उन्हें घेरकर सांप के बारे में बताने लगते हैं। अर्जुन सभी लोगों से शांत रहने को कहते हैं और कमरे में घुसकर नंगे हाथों बिना किसी औज़ार के कोबरा प्रजाति के सांप को पकड़कर बाहर ले आते हैं। गांव वाले इसके बदले में अर्जुन को कुछ न कुछ देना चाहते हैं लेकिन वो सिर्फ़ एक कागज़ पर ये लिखवाते हैं कि उन्होंने ये सांप पकड़ा है।
जब नागराज किंगकोबरा से पड़ा पाला
अर्जुन एक कहानी सुनाते हैं, “एक बार की बात है जब मैं एक रिजॉर्ट में सांप पकड़ने गया हुआ था। वहां पर काफी लोग जमा थे।” “लोग अपने मोबाइल कैमरों पर वीडियो बना रहे थे और सांप एक पेड़ पर चढ़ा हुआ था। वो एक किंग कोबरा यानी नागराज था जो कि बेहद ज़हरीला होता है। मैं जल्दी से पेड़ पर चढ़ा। लेकिन मुझे पता था कि अगर ये तेज़ी से नीचे आया तो लोग चीखेंगे और नाग मुझ पर हमला कर देगा।”
“मैंने नाग की पूंछ पर हल्के से सहलाया तो वह तेजी से पलटकर मेरे मुंह की ओर आया और फुंफकार मारी। उस दिन मुझे लगा कि सांप ख़तरनाक होते हैं लेकिन उसी दिन मुझे ये भी अहसास हुआ कि सांप किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं और वे अपनी आत्मरक्षा में किसी को काटते हैं। क्योंकि उस किंग कोबरा ने मुझे डराया लेकिन मुझे काटा नहीं। ” किंग कोबरा प्रजाति के सांप की विशेषता ये है कि इस सांप के काटने के 30 मिनट के अंदर पीड़ित की मौत हो जाती है।
‘मैं सपेरा नहीं हूं’
अर्जुन अपने बचपन की बात बताते-बताते थोड़े भावुक हो जाते हैं और कहते हैं, “जब मैं छोटा था तो स्कूल में कई बच्चे मुझे सपेरा कहते थे। मुझे ये सुनकर इतना गुस्सा आता था कि मन करता था कि इन्हें पीटूं या क्या करूं क्योंकि मैं और मेरा परिवार सपेरा नहीं है। ” “सपेरा का मतलब होता है सांपों का व्यापार। वो करतब दिखाते हैं, सांप को नेवले से लड़ाते हैं, उनका ज़हर निकालकर बेचते हैं लेकिन हम लोग सांपों को लोगों से बचाते हैं और उन्हें वापस जंगल में छोड़ते हैं। हम शिकारी नहीं हैं।” अर्जुन आगे चलकर एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था बनाना चाहते हैं जिसमें देशभर में मौजूद सांपों को बचाने वालों को शामिल किया जा सके और दुनिया में सांपों के प्रति लोगों का नज़रिया बदलना चाहते हैं।