ऊर्जा विभाग में बिजली की लूट, गहरी नींद में आलाधिकारी
देहरादून। उत्तराखंड के ऊर्जा विभाग में निरंतर बिजली की लूट की जा रही है। बावजूद इसके विभाग के आलाधिकारी गहरी निंद्रा में सोए हैं। गौरतलब है कि उत्तराखंड के रुड़की में अगस्त माह में सचिव ऊर्जा राधिका झा द्वारा हाईटेक डिवाइस से पकड़ी गई बिजली चोरी प्रकरण में ऊर्जा विभाग के यूपीसीएल व पिटकुल के अधिकारी बाज नही आ रहे है। मामले में ऊर्जा सचिव ने दोनों ही महकमों को त्वरित जाँच के आदेश दिए थे, लेकिन 11 माह बीत जाने पर भी आज तक मामले में ‘कौन दोषी और कब होगी कार्रवाई’ कहने के लिए कोई तैयार नहीं हैं। भले ही पिटकुल ने 13 लोगों को आरोप पत्र जारी कर दिये थे और तबादले का नाटक भी किया गया परन्तु बाद में कई अधिकारियों को वापस मुख्यालय की गोद मे बुला लिया गया।
दरअसल, सचिव राधिका झा ने रुड़की में अलग-अलग जगह पर छापेमारी की थी, जिसमे लक्सर के 132 KV पिटकुल सब स्टेशन में इंस्ट्रुमेंट लगाकर पिटकुल और यूपीसीएल के अधिकारी-कर्मचारियों द्वारा बड़ी फैक्टरियों में चोरी करवाई जा रही थी। इस पर नाराजगी जताते हुए सचिव राधिका झा ने दोनों निगमों के एमडी को त्वरित जांच के आदेश सहित एफआईआर दर्ज करने को भी आदेश दिए थे। मामले में कईं दिनों बाद पिटकुल के अधिकारीयों द्वारा रुड़की के बहादराबाद थाने में मजबूरन अज्ञात के खिलाफ बिजली चोरी की एफआईआर दर्ज करवाई गयी थी। मामले में पहले ही लीपापोती सामने दिखने लगी थी, जब पिटकुल और यूपीसीएल के कर्मचारियों की मिली भगत से बिजली चोरी करवाई जा रही थी तो एफआईआर अज्ञात के खिलाफ क्यों? घर मे छोरा और गॉव भर में ढिंढोरा !
लक्सर स्थित पिटकुल सब स्टेशन के साथ ही यूपीसीएल के सब स्टेशनों से बिजली चोरी के मामले में यूपीसीएल व पिटकुल अभियंताओं की भूमिका पर भी सवाल उठे। सूत्रों के अनुसार दोनों निगमों के कई अभियंताओं व कर्मचारियों की मिलीभगत से करोड़ो की बिजली की चोरी की गई। प्रमुख सचिव ऊर्जा द्वारा प्रकरण में जल्द जांच करने का आदेश देने के साथ ही रिपोर्ट तलब की थी। इससे विभागीय अधिकारियों और अभियंताओें में हड़कंप स्थिति थी। इस मालमे में पुन: कोई कार्रवाई न होने पर गत वर्ष 25 अक्टूबर को सचिव ऊर्जा राधिका झा द्वारा नाराजगी प्रकट करने और कड़े निर्देशों के बाद यूपीसीएल व पिटकुल ने उन मुख्य अभियंताओं के नेतृत्व में ही चार सदस्यीय कमेटी बना डाली, जिनकी कारगुजारियों का ही परिणाम है कि यूपीसीएल ने क्लीनचिट देकर पूरे मामले को संदेहास्पद बना दिया था। इस पर सवाल उठने लाजमी है। आखिर क्यों यूपीसीएल ने उन्हीं अधिकारियों को जांच सौंपी जो इसी सर्किल में तैनात थे? कैसे वो अपनी टीम को दोषी करार देते, जबकि वो उसी टीम के सरगना हैं।
लक्सर सबस्टेशन से बिजली चोरी कराने के मामले में पिटकुल के नौ इंजीनियरों समेत 13 कर्मचारियों को चार्जशीट जारी कर दी गई थी। चार्जशीट पर जवाब आने के बाद विस्तृत जांच होनी थी। लक्सर स्थित पिटकुल सबस्टेशन से स्टील इंडस्ट्री को बिजली चोरी कराने की शिकायत पर छापेमारी के बाद मीटर सील कर दिए गए थे। यूपीसीएल और पिटकुल के अफसरों की संयुक्त टीम की जांच में पिटकुल के 13 अफसरों की भूमिका संदिग्ध मिली थी। सबस्टेशन में लगे मीटर में छेड़छाड़ कर उद्योग को लाभ दिया जा रहा था। इसके बाद पिटकुल प्रबंधन ने एक एक्सईएन, दो एई, छह जेई, चार तकनीकी ग्रेड के कर्मियों के खिलाफ चार्जशीट जारी कर दी थी।
इन्हें दी गई थी चार्जशीट:
अधिशासी अभियंता राजीव सिंह, सहायक अभियंता मांगे राम, एई विरेंद्र सिंह, जेई निर्देश कुमार चौहान, जेई विजयमल प्रसाद, विनोद कुमार सैनी, योगेश कुमार, रविंद्र कुमार, हिमांशु मंद्रवाल, टीजी-वन संदीप कुमार, टीजी-टू हरमेंद्र सिंह, दुलीचंद, रविंद्र कुमार। लक्सर सबस्टेशन में अनियमितताओं पर 13 लोगों को चार्जशीट सौंपकर तत्काल जवाब मांगा गया था। जवाब के परीक्षण को जांच अधिकारी नियुक्त किए गए थे। जिनकी विस्तृत जांच रिपोर्ट के बाद मामले में दोषी पाए जाने वालों पर सख्त कार्रवाई की जानी थी। जिसमे छोटे कर्मचारियों को प्रशासनिक/अनुशासनात्मक आधार पर स्थानांतरित किया गया परन्तु अब तक बड़े अधिकारियों के खिलाफ कोई भी कार्यवही नहीं कि गयी। जाँच अभी भी अधेड़ में लटकी हुई है। सूत्रों की माने तो इसमें कुछ शीर्ष अधिकारियों की संलिप्तता पर संदेह है। क्योंकि गत वर्ष में जितने प्रकरण बिजली चोरी के सामने आए उनके सापेक्ष कोई ठोस कार्यवाही होती दिख नही रही। जिसके फलस्वरूप बिजली चोरो के मंसूबो सातवे आसमान पर है। ऊर्जा विभाग में तो यह भी सुगबुगाहट है कि बिजली चोरी का जो उपकरण मौके से बरामद हुआ था वो किसी भी जांच सीमिति या पुलिस के हवाले किया ही नही गया। तो इस बात को कैसे नकारा जा सकता है कि वह उपकरण बदला नही है। क्या यह न्यायसंगत है? क्या यह विद्युत अधिनियम के विरुद्ध नही है? और यदि यह सब किसी बड़ी साजिश के तहत दोषियों के बचने या बचाने का खेल है तो राज्य सरकार इस पर कोई कदम उठाएगी या सिर्फ …..
प्रदेश एवं आम जनता के हित में सरकार को कुछ ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे प्रदेश में चल रही इस लूट को रोका जा सके। क्योंकि विभाग के आंतरिक अधिकारियों से यह रुकना सम्भव नही प्रतीत होता। ऊर्जा विभाग को केंद्रीय सरकार अथवा बाह्य एजेंसियों की मदद लेनी अति आवश्यक है। यदि सरकार इस प्रकार का कदम उठाती है तो कुमायूं एवं गढ़वाल मंडल मिलाकर बड़ी फैक्ट्रीयों में सप्लाई देने वाले दर्जनों बिजली घर से चोरी पकड़ी जा सकती है जोकि निरंतर जारी है। जिसमे विशेषकर कोटद्वार, रुद्रपुर, काशीपुर एवं सितारगंज आदि के बिजलीघरों में खुलेआम बिजली चोरी को अंजाम दिया जा रहा है। क्या राजस्व को करोड़ो रूपये की क्षति से बचाया जा सकेगा, या प्रधानमंत्री मोदी के हर घर में बिजली पहुचाने का सपना उत्तराखंड में सिर्फ सपना ही रह जाएगा और ऐसे ही चोरी में लिप्त अधिकारी सरकार को चुना लगते रहेंगे।