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स्कूली बच्चों में तेजी से बढ़ रही वैपिंग डिवाइस के इस्तेमाल की लत

नई दिल्ली। पिछले साल एक वैश्विक अध्यन्न के बाद पाया गया था कि करीब 6.25 लाख भारतीय बच्चे स्मोकिंग करते हैं। लेकिन अब स्कूलों के सामने तंबाकू चबाने और सिगरेट पीने से भी बड़ी समस्या है। अब स्टूडेंट स्लीक वैपिंग डिवाइस (ई-सिगरेट के समान) की तरफ रूख कर रहे हैं। पिछले दिनों पूर्वी दिल्ली के कई स्कूलों में बच्चों के पास ऐसी डिवाइस पाई गई थी।

टीचर्स का कहना है कि वैपिंग का शौक स्टूडेंट में एक सनक की तरह बढ़ रहा है। स्टूडेंट अपने दोस्तों के साथ इस तरह की डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं। एक टीचर ने बताया, ‘स्टूडेंट इसके पीछे दलील देते हैं कि स्मोकिंग की आदत से छुटकारा पाने के लिए वे लोग इस डिवाइस का सहारा ले रहे हैं।’ इसका इस्तेमाल करने वाले छात्रों को पकड़ पाना मुश्किल है, क्योंकि इसमें न तो दुर्गंध होती है और न ही इसे सुलगाने की जरूरत होती है।

दिल्ली के कैलाश कॉलोनी के ब्लूबेल्स स्कूल इंटरनैशनल की प्रिंसिपल सुमन कुमार का कहना है कि छात्र ई-सिगरेट का इस्तेमाल भी तेजी से करने लगे हैं। उन्होंने कहा कि स्कूलों के लिए यह अब बड़ा मुद्दा बन गया है। हालांकि इस बारे में जानकारों के मतभेद हैं कि स्टूडेंट को सिगरेट की तरह ही वैपिंग डिवाइस की लत लग जाती है। कुछ जानकारों का कहना है कि वैपिंग डिवाइस से होने वाला नुकसान सिगरेट के मुकाबले न के बराबर है।

वैपिंग डिवाइस बनाने वाले एक कंपनी जूल ने भी चेतावनी जारी कर बताया है कि उनके प्रॉडक्ट बच्चों के लिए नहीं हैं। इसके इस्तेमाल से बच्चों में होने वाले खतरे को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वाणिज्य मंत्रालय से निवेदन किया है कि इस तरह के प्रॉडक्ट को भारत में लाने पर रोक लगनी चाहिए।

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एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 2007 के बाद ई-सिगरेट की डिमांड काफी बढ़ गई है। उन्होंने बताया, ‘आज कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो खुद दुकान पर आकर नहीं खरीदते हैं, वे ऑनलाइन इसे मंगाते हैं या फिर अपने ड्राइवर या घर में काम करने वाले अन्य लोगों से ऐसा कराते हैं।’ दक्षिणी दिल्ली में स्कूलों के पास बनी कई दुकानों पर सभी फ्लेवर की वैपिंग डिवाइस का खूब प्रचार होता है।

आरके पुरम में एक दुकानदार ने बताया, ‘हम इसे बच्चों को नहीं बेचते हैं, वे स्कूल यूनिफॉर्म में होते हैं तो हम उन्हें आसानी से पहचान लेते हैं, लेकिन यदि वे साधारण कपड़ों में होते हैं तो पहचानना मुश्किल होता है।’ खरीददार ने बताया, ‘इस डिवाइस को बड़ी गाड़ी वाले लोग ही खरीद सकते हैं क्योंकि इसकी कीमत 3,000 रुपये से 30,000 रुपये तक होती है, जो इनके आकार और फ्लेवर पर निर्भर करती है।’

सीबीएसई हेल्पलाइन का काउंसिलर गीतांजलि कुमार का कहना है कि यह अब आम समस्या बनती जा रही है। उन्होंने कहा, ‘बच्चे सोशल मीडिया के जरिए ऐसी चीजों के बारे में सीखते हैं। वे पहले सोशल मीडिया पर किसी को इसका इस्तेमाल करते हुए देखते हैं और फिर खुद इस्तेमाल करते हुए दूसरों को सोशल मीडिया पर दिखाते हैं। स्कूलों को इस समस्या पर ध्यान देना चाहिए।’

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