उत्तर भारत में महसूस हुए भूकंप के तेज झटके, पढ़िये पूरी खबर
नई दिल्ली। दिल्ली-NCR समेत पूरे उत्तर भारत में शुक्रवार देर रात भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र समेत उत्तर भारत के अनेक हिस्सों में शुक्रवार रात 6.1 तीव्रता का भूकंप महसूस किया गया। उत्तर भारत में शुक्रवार को रात 10 बजकर 34 मिनट पर भूकंप के तेज झटके महसूस किए जाने के बाद लोग घरों से बाहर निकल आए। भूकंप का केंद्र ताजिकिस्तान बताया जा रहा है। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.1 मापी गई। खबर लिखे जाने तक कहीं भी तत्काल जानमाल के नुकसान की कोई खबर नहीं है।
पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि अमृतसर समेत पंजाब में कहीं भी किसी तरह के कोई नुकसान की खबर नहीं आ रही है। पुलिस और प्रशासन हालात पर करीब से जनर रख रहा है। भूकंप से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत अनेक स्थानों पर लोगों में दहशत फैल गई। गाजियाबाद के वैशाली और वसुंधरा तथा अन्य इलाकों में भूकंप के डर से लोग घरों से बाहर निकल आए। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य हिसों में भी भूकंप का भय देखा गया।
दिल्ली समेत नोएडा, गाजियाबाद में शुक्रवार देर रात भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए।
जानिए क्यों आता है भूकंप?
धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है, इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट। क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल को लिथोस्फेयर कहते हैं। ये 50 किलोमीटर की मोटी परत, वर्गों में बंटी हुई है, जिन्हें टैकटोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये टैकटोनिक प्लेट्स अपनी जगह से हिलती रहती हैं लेकिन जब ये बहुत ज्यादा हिल जाती हैं, तो भूकंप आ जाता है। ये प्लेट्स क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर, दोनों ही तरह से अपनी जगह से हिल सकती हैं। इसके बाद वे अपनी जगह तलाशती हैं और ऐसे में एक प्लेट दूसरी के नीचे आ जाती है।
भूकंप आने पर क्या करें क्या न करें
भूकंप आने के वक्त यदि आप घर से बाहर हैं तो ऊंची इमारतों, बिजली के खंभों आदि से दूर रहें। जब तक झटके खत्म न हों, बाहर ही रहें। चलती गाड़ी में होने पर जल्द गाड़ी रोक लें और गाड़ी में ही बैठे रहें। ऐसे पुल या सड़क पर जाने से बचें, जिन्हें भूकंप से नुकसान पहुंचा हो।
भूकंप आने के वक्त यदि आप घर में हैं तो फर्श पर बैठ जाएं। मजबूत टेबल या किसी फर्नीचर के नीचे पनाह लें। टेबल न होने पर हाथ से चेहरे और सिर को ढक लें। घर के किसी कोने में चले जाएं और कांच, खिड़कियों, दरवाज़ों और दीवारों से दूर रहें।
वहीं बिस्तर पर हैं तो लेटे रहें, तकिये से सिर ढक लें। आसपास भारी फर्नीचर हो तो उससे दूर रहें। लिफ्ट का इस्तेमाल करने से बचें, पेंडुलम की तरह हिलकर दीवार से टकरा सकती है लिफ्ट और बिजली जाने से भी रुक सकती है लिफ्ट। कमजोर सीढ़ियों का इस्तेमाल न करें, आमतौर पर इमारतों में बनी सीढ़ियां मज़बूत नहीं होतीं. झटके आने तक घर के अंदर ही रहें और झटके रुकने के बाद ही बाहर निकलें।
विभिन्न रिक्टर स्केलों पर भूकंप
- रिक्टर स्केल के अनुसार 2.0 की तीव्रता से कम वाले भूकंपीय झटकों की संख्या रोजाना लगभग आठ हजार होती है जो इंसान को महसूस ही नहीं होते।
- रिक्टर स्केल पर 2.0 से लेकर 2.9 की तीव्रता वाले लगभग एक हजार झटके रोजाना दर्ज किए जाते हैं, लेकिन आम तौर पर ये भी महसूस नहीं होते।
- रिक्टर स्केल पर 3.0 से लेकर 3.9 की तीव्रता वाले भूकंपीय झटके साल में लगभग 49 हजार बार दर्ज किए जाते हैं, जो अक्सर महसूस नहीं होते, लेकिन कभी-कभार ये नुकसान कर देते हैं।
- रिक्टर स्केल पर 4.0 से 4.9 की तीव्रता वाले भूकंप साल में लगभग 6200 बार दर्ज किए जाते हैं। इस वेग वाले भूकंप से थरथराहट महसूस होती है और कई बार नुकसान भी हो जाता है।
- रिक्टर स्केल पर 5.0 से 5.9 तक का भूकंप एक छोटे क्षेत्र में स्थित कमजोर मकानों को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाता है जो साल में लगभग 800 बार महसूस होता है।
- रिक्टर स्केल पर 6.0 से 6.9 तक की तीव्रता वाला भूकंप साल में लगभग 120 बार दर्ज किया जाता है और यह 160 किलोमीटर तक के दायरे में काफी घातक साबित हो सकता है।
- रिक्टर स्केल पर 7.0 से लेकर 7.9 तक की तीव्रता का भूकंप एक बड़े क्षेत्र में भारी तबाही मचा सकता है और जो एक साल में लगभग 18 बार दर्ज किया जाता है।
- रिक्टर स्केल पर 8.0 से लेकर 8.9 तक की तीव्रता वाला भूकंपीय झटका सैकड़ों किलोमीटर के क्षेत्र में भीषण तबाही मचा सकता है जो साल में एकाध बार महसूस होता है।
- रिक्टर स्केल पर 9.0 से लेकर 9.9 तक के पैमाने का भूकंप हजारों किलोमीटर के क्षेत्र में तबाही मचा सकता है, जो 20 साल में लगभग एक बार आता है। दूसरी ओर 10.0 या इससे अधिक का भूकंप आज तक महसूस नहीं किया गया।
भारत में भूकंपीय जोन
भूकंप का खतरा देश में हर जगह अलग-अलग है। इस खतरे के हिसाब से देश को चार हिस्सों में बांटा गया है। जोन-2, जोन-3, जोन-4 तथा जोन-5। सबसे कम खतरे वाला जोन 2 है तथा सबसे ज्यादा खतरे वाला जोन-5 है। नार्थ-ईस्ट के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में आते हैं। उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से, दिल्ली जोन-4 में आते हैं। मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं, लेकिन यह एक मोटा वर्गीकरण है।
दिल्ली में कुछ इलाके हैं जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं। इस प्रकार दक्षिण राज्यों में कई स्थान ऐसे हो सकते हैं जो जोन-4 या जोन-5 जैसे खतरे वाले हो सकते हैं। दूसरे जोन-5 में भी कुछ इलाके हो सकते हैं जहां भूकंप का खतरा बहुत कम हो और वे जोन-2 की तरह कम खतरे वाले हों। इसके लिए भूकंपीय माइक्रोजोनेशन की जरूरत होती है। माइक्रोजोनेशन वह प्रक्रिया है जिसमें भवनों के पास की मिट्टी को लेकर परीक्षण किया जाता है और मिट्टी के प्रकार के आधार पर मकानों का डिजाइन तैयार किया जाता है।
भूकंप की गहराई से क्या मतलब है?
मतलब साफ है कि हलचल कितनी गहराई पर हुई है। भूकंप की गहराई जितनी ज्यादा होगी सतह पर उसकी तीव्रता उतनी ही कम महसूस होगी। रिक्टर स्केल पर आमतौर पर 5 तक की तीव्रता वाले भूकंप खतरनाक नहीं होते हैं, लेकिन यह क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। यदि भूकंप का केंद्र नदी का तट पर हो और वहां भूकंपरोधी तकनीक के बगैर ऊंची इमारतें बनी हों तो 5 की तीव्रता वाला भूकंप भी खतरनाक हो सकता है।