उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक जीत सिंह नेगी का निधन, मुख्यमंत्री ने किया शोक व्यक्त
देहरादून। उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक एवँ गढ़वाली संस्कृति के पुरोधा जीत सिंह नेगी का निधन हो गया है। पहाड़ी संस्कृति के उपासक प्रख्यात रचनाकार और लोक गायक जीत सिंह नेगी अब हमारे बीच नहीं रहे। 94 साल के जीत सिंह नेगी ने अपने धर्मपुर स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से लोक कलाकारों के साथ ही प्रदेशवासियों में शोक है। वहीं, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लोकगायक और गीतकार जीत सिंह नेगी के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने और शोक संतप्त परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
जीत सिंह नेगी पहाड़ी संस्कृति के उपासक रहने के साथ ही प्रख्यात रचनाकार, लोकगायक और रंगकर्मी भी थे। उनका जन्म पौड़ी गढ़वाल जिले के पैडुलस्यूं पट्टी स्थित अयाल गांव में दो फरवरी 1927 को हुई था। वर्तमान में वो देहरादून के धर्मपुर में रहते थे। जीत सिंह नेगी ने गढ़वाली में गीत लिखकर उन्हें अपनी आवाज भी दी। वो हमेशा से ही लोकसंस्कृति से जुड़े रहे और इसे संजोए रखने के लिए वो हमेशा ही आगे रहे। उनके गीत गंगा, जौंल मगरी, छम घुंघुरू बाजला (गीत संग्रह), मलेथा की कूल (गीत नाटिका), भारी भूल (सामाजिक नाटक) समेत कई रचनाएं आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं। लोकगायक जीत सिंह नेगी को ‘गोपाल बाबू गोस्वामी लीजेंडरी सिंगर’ से भी सम्मानित किया।
जीत सिंह नेगी उत्तराखंड के पहले ऐसे पहले लोकगायक हैं, जिनके गीतों का ग्रामोफोन रिकॉर्ड 1949 में यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी ने जारी किया था। इसमें छह गीत शामिल किए गए थे। जीत सिंह नेगी न सिर्फ प्रसिद्ध लोकगायक हैं, बल्कि उत्कृष्ट संगीतकार, निर्देशक और रंगकर्मी भी रहे। दो हिंदी फिल्मों में उन्होंने बतौर सहायक निर्देशक भी काम किया है। इतना ही नहीं, जीत सिंह नेगी पहले ऐसे गढ़वाली गायक भी हैं, जिनके गाने का ऑल इंडिया रेडियो से सबसे पहले प्रसारण हुआ। जीत सिंह नेगी के निर्देशन में 1954-55 में दिल्ली में आयोजित गढ़वाली नाटक ‘भारी भूल’ के मंचन में मनोहर कांत धस्माना मुख्य भूमिका में नजर आए थे।