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असली आजादी के मायने

हमारे देश को आजाद हुए सत्तर वर्ष का का समय व्यतीत हो चुका है किन्तु आज भी हम कई मायनों में पिछड़े हुए हैं, आज भी हम भारतीय कई तरह से गुलाम बने हुए हैं, हम इस लेख में कुछ चीजें का जिक्र करने जा रहे हैं। हमारा मानना है कि जब तक इन कुछ बातों पर गौर कर इन्हें दूर ना किया जाये तब तक हम असली आजादी और उसकी सुगंध को महसूस नहीं कर सकते।

भारत आज एक लोकतांत्रिक देश है जो कई वर्षों तक अंग्रेजो का गुलाम बना रहा। इसे लोकतांत्रिक बनाने और अंग्रेजो की गुलामी से आजाद कराने के लिए हमारे पूर्वजों ने अपनी शहादतें दी तब कहीं जाकर आज हम खुलकर मुस्कुरा सकते हैं और आजादी की इस हवा में सांस ले सकते हैं। हमारे देश के वीर सपूतों ने भारत भूमि को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए सिर्फ अपनी जान ही नहीं दी बल्कि जिन्दा रहते हुए भी उन्होंने कई तरह की यातनाएं सही और कुर्बानियां दी।
जहां माताओं ने अपने लालों को खोया तो वहीं बहनों ने अपने भाईयों और अपने सुहागों को देश के लिए जान गंवाते हुए देखा।

वाकई उस दर्द का जितना भी वर्णन किया जाये कम ही है किन्तु हमारे वीर सपूतों ने जिस स्वतंत्र भारत की कल्पना कर अपने प्राण न्योछावर किये थे शायद उस भारत की तस्वीर को हम साकार नहीं कर पाये हैं। हम आज भी कई मायनों में गुलाम बने हुए हैं। ये गुलामी हमारे समाज के भीतर ही फैली हुई है और हमारी मानसिकता पर अपनी गहरी पैठ बनाये हुए बैठी है। इस घिनौनी मानसिकता को हम हिन्दुस्तानी शायद बदलना ही नहीं चाहते हैं जिस वजह से आज भी हम कई तरह से गुलाम बने हुए हैं। यह बड़े ही दुर्भाग्य का विषय है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी हम अपनी मानसिकता के गुलाम बने हुए हैं।

आजादी के मतवाले हमारे वीर सपूतों ने हमारे देश भारत के लिए एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जिसमें कोई बड़ा या छोटा न हो, किसी के मन में किसी के प्रति कोई बैर या भेदभाव न हो। सभी भारतीय मिलजुलकर आपसी प्रेम और सौहार्द की भावना से रहे। जाति और धर्म का भेद भुलाकर स्वयं को सिर्फ भारतीय ही समझे मगर ऐसा हो न सका। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, लाल बहादुर शास्त्री और राजगुरू जैसे कई वीरों ने अपना योगदान दिया है। हमारे देश के ऐसे कई वीर सपूतों ने मातृभूमि को अपने लहू से सींचकर हमारे लिए स्वतंत्र धरती का निर्माण किया है। इन सभी वीरों का जिक्र कर पाना तो इस लेख में संभव नहीं होगा किन्तु हम देश के प्रति उनके जज्बे और साहस को प्रणाम जरूर कर सकते हैं। वाकई आज हमें ऐसे ही जज्बे की आवश्यकता है। हमें अपने देश के वीर शहीदों से प्रेरणा लेकर जीवन में आगे बढ़ना होगा और अपनी मानसिकता को बदलकर देश एवं समाज के लिए भी सोचना होगा।

आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है। हर कोई अपनेआप में ही खोया हुआ है। पैसा कमाने की अंधी दौड़ में आज मानव की संवेदनाएं कहीं गुम हो गई हैं। देश हित और समाज के उत्थान की बातें महज किताबी होकर रह गई हैं। यदि राजनेताओं की ही बात करें तो ये विडम्बना ही है कि हमारे देश के राजनेता महज सत्ता पाने की कवायद में जुटे नजर आते हैं उन्हें समाज और सामाजिक मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है। चुनाव नजदीक आते ही हमारे नेता लोकलुभावनी घोषाणाएं करते हैं और कुर्सी मिलते ही सबभुलाकर अपनी जेबें भरने में व्यस्त हो जाते हैं। ऐसा है हमारा लोकतंत्र जहां आवाज उठाने पर भी इंसाफ नहीं मिलता, देश में बढ़ रहे अपराधऔर महिलाओं पर हो रहे जुल्मों की घटनाएं ये बयां करने के लिए काफी है कि हमारी मानसिकता किस हद तक गिर चुकी है। स्वतंत्र होने के बाबजूद आज भी भारत में महिलाओं को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार शायद नहीं है!

अकेले घर से बाहर निकली महिला या तो लूट की शिकार बन रही है या फिर उसकी अस्मत तार-तार कर दी जाती है। महज बाहर ही नहीं घर में भी महिलाओं को स्वतंत्रता से जीने का हक मयस्सर नहीं है। अांकड़े बयां कर रहे हैं कि किस हद तक भारत में घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं। कभी दहेज लाने के लिए विवश करते हुए तो कभी चरित्रहीन होने का आरोप लगाते हुए महिलाओं पर ज्यात्तियां और अत्याचार किये जाते हैं और हमारी सरकारें बड़े-बड़े विज्ञापनों में महिलाओं के हक की बातें करती नजर आती हैं। यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले दस वर्षों में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की वारदातों में तेजी से इजाफा हुआ है जो बेहद शर्मनाक है।
ये उदाहरण हमारे समाज की काली तस्वीर बयां करने के लिए काफी नहीं है, एक और कडुवा सच है जिससे हम सभी वाकिफ होने के बावजूद उससे मुंह फेर लेते हैं। भारत में आज भी लगभग आधी आबादी गरीबी में जीवन यापन करने को विवश है। सरकारी आंकड़े कुछ भी बयां करें किन्तु सड़कों पर सर्दी, गर्मी और बरसात में नंगे पैर व नंगे बदन दौड़ते व चलते हुए फटे हाल बच्चों को देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि हम आज भी गुलाम है। यदि हम सचमुच आजाद हो चुके हैं तो हमारे देश की लगभग आधी आबादी आज भी भूखों पेट सोने को विवश क्यों है।
हमारी सरकारों द्वारा गरीबों के उत्थान, उन्हें रोजगार देने और उनको मुख्यधारा में जोड़कर उनका पुर्नवास करने की बड़ी-बड़ी बातें की जाती है किन्तु हकीकत इन सब से परे है। दो-जून की रोटी के अभाव में एवं भूखमरी के चलते गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोग बड़ी तादात में अपराध की दुनिया में कदम रख रहे हैं जो हमारे समाज के लिए और देश के भविष्य के लिए शुभसंकेत नहीं है। ये तमाचा है उन सरकारों के मुंह पर जो ऐसे पिछड़े लोगों के लिए कुछ करने का दावा करने के बावजूद कुछ करना नहीं चाहती।

देश के पिछड़े, शोषित, वंचित और लाचार लोगों की मदद करके ही हम असली आजादी की अनुभूति कर सकते है और इन अभागों को भी असली आजादी का अहसास करा सकते हैं। किन्तु ऐसा करने का साहस आज शायद हम खो चुके हैं, हमारी संवेदनाएं शून्य हो चुकी हैं हम स्वयं तो आजाद रहना चाहते हैं किन्तु दूसरों की आजादी छीनना और उन्हें मोहताज बना देखने में ही शायद हमें सुकून मिलता है। क्या यही असली आजादी है? हमारे शहीदों ने तो देश की ऐसी सूरत की कल्पना नहीं की होगी जहां भेदभाव भरा पड़ा हो लोग जाति और धर्म के नाम पर एक दूसरे का खून बहा रहे हों। अमीर और अमीर होता जा रहा हो और गरीब तिल-तिलकर मरने को विवश। वाकई ऐसी आजादी से तो वो गुलामी ही अच्छी रही होगी शायद! मातृभूमि पर अपना सर्वत्र न्योछावर करने वाले जियालों को अगर देश के आने वाले ऐसे भयानक हालातोें के बारे में जरा भी बोध होता तो शायद वे अपनी जान न गंवाते। शर्म आनी चाहिए हमें खुद पर जो हम ऐसे वीरों की गाथाओं को सुनकर भी उनसे प्रेरणा नहीं लेते और देश के प्रति कुछ भला करने से गुरेज करते हैं। हां हम वही हिन्दुस्तानी हैं जो पन्द्रह अगस्त और 26 जनवरी को तो शान से तिरंगा लहराते हैं और अगले ही दिन उसे उतारकर कहीं कूड़े में फेंक देते हैं। तिरंगा तो छोडि़ए देश और उससे जुड़ी चीजों के बारे में सोचना भी अपनी तौहीन समझते हैं और दावा करते हैं कि हम सच्चे देशभक्त हैं।

हमारी असली आजादी के मायने तभी साकार हो पायेंगे जब हम सभी अपना-अपना कर्तव्य समझकर देश के हित के लिए अपना थोड़ा बहुत योगदान देंगे। हम सभी को चाहिए कि ऐसे कार्य करें जिससे देश और समाज का सरोकार हो। चुनाव में वोट जरूर दे और ऐसे व्यक्ति को चुने जो वाकई समाज के लिए कुछ करने का माद्दा रखता हो, यदि कुछ भी गलत हो रहा हो तो उसके खिलाफ आवाज जरूर उठायें, सड़क पर पड़े किसी घायल और लाचार की मदद करने से न चूके, किसी मजबूर का सहारा बनने में संकोच न करें। ऐसी तमाम बातें हैं जिन पर अमल करके हम देश और समाज के हित में अपना थोड़ा योगदान दे सकते हैं। ऐसा कुछ करने से वाकई हम असली आजादी को महसूस कर सकते हैं और दूसरों को भी इस आजादी का अहसास करा सकते हैं।

प्रस्तुति:- त्रिलोक चन्द्र

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