अपने कुशल नेतृत्व से विरोधियों की बोलती बंद कर दी मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने

उत्तराखंड के लोकप्रिय मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी कुशल कार्यशैली के चलते राज्य की जनता के चहेते बने हुए हैं। हर कोई मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यों की सराहना करता नजर आ रहा है। कोरोना काल के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए सही समय पर सही निर्णय लिए और सरकार का नेतृत्व करते हुए काफी हद तक उत्तराखंड की जनता को कोरोनावायरस जैसी भयंकर महामारी के संक्रमण से बचाने का कार्य किया।
यह मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कुशल नेतृत्व एवं सटीक निर्णयों का ही परिणाम है कि आज राज्य में कोरोना संक्रमण के फैलने की रफ्तार काफी थम गई है। वहीं मरीजों के रिकवरी रेट में भी इजाफा हुआ है। कोविड-19 को लेकर अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड की स्थिति काफी बेहतर है। बस यही बात मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र एवं राज्य सरकार के विरोधियों के गले नहीं उतर रही है।
मुख्यमंत्री के बेहतरीन कार्य विरोधियों की आंखों में खटक रहे हैं। वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि किस तरह से मुख्यमंत्री की राहों में रोड़े बिछाए जाएं। राज्य हित के कार्य करने वाले कर्मठ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपना शत्रु मान बैठे यह विरोधी चारों ओर से सीएम पर निशाना साध रहे हैं और उनकी कमियां निकालने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सराहनीय कार्यों की प्रशंसा करने वाली पत्रकारों को भी यह विरोधी अपना निशाना बना रहे हैं और सोशल मीडिया के जरिए ईमानदार कलम पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। मगर कहते हैं कि ‘सांच को क्या आंच’ बस यही सोचकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र कर्मठता और जुझारूपन से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते जा रहे हैं, जिस वजह से उनकी चारों ओर वाहवाही हो रही है ।
कहना न होगा कि अपने कुशल नेतृत्व से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने विरोधियों की बोलती बंद कर दी है। चारों खाने चित होने के बाद अब विरोधी उन पर इस तरह के आरोप लगा रहे हैं जिनका कोई आधार ही नहीं है। राज्य को विकास के पथ पर आगे ले जाने वाले ईमानदार मुख्यमंत्री के खिलाफ साजिशों का जाल बुनने वाले अपनी मर्यादा तक भूल चुके हैं तथा अपने घिनौने चरित्र का परिचय देते हुए ओछी हरकतें करने पर निरंतर आमादा है। मगर वे शायद ये बात भूल गए हैं कि अंत में सच्चाई की ही जीत होती है। झूठ के काले बादल चाहे जितने ही घने क्यों ना हो सच्चाई की दूधिया रौशनी में छठ ही जाते हैं।
विरोधियों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि प्रदेश की जनता जागरूक है। वह सब कुछ अपनी आंखों से साफ-साफ देख रही है कि कौन सही है और कौन गलत। ‘ये पब्लिक है यह सब जानती है।’ अंत में सच्चाई का ही बोलबाला होगा और झूठों का मुंह काला होगा।