आखिर कब काम करेगी ये सरकार ?
देहरादून। उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार और उसके मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल को एक वर्ष होने जा रहा है मगर अफसोस कि इस लगभग एक साल की अवधि के दौरान त्रिवेन्द्र सरकार ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिसके लिए उसकी प्रशंसा की जाये। यदि यूं कहा जाये कि सरकार ने कोई कार्य ही नहीं किया है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
दरअसल त्रिवेन्द्र सिंह रावत को आनन-फानन में भाजपा आलाकमान के द्वारा सूबे की कमान सौंप दी गई, किन्तु पहली बार सीएम बनें त्रिवेन्द्र को ये समझने में ही एक साल लग गया कि आखिर मुख्यमंत्री का काम क्या होता है। उनकी बाॅडी लेंग्वेज से भी दिखलायी पड़ता है कि वे अपने कार्याें को लेकर कितना असहज सा महसूस करते हैं। फिर भला राज्य की जनता को वो कैसे राहत दे सकते हैं जो स्वयं पसोपेश की स्थिति में हों।
देशभर में विकास के ढ़िढ़ोरे पीटने और विकास के नाम पर वोट मांगने वाली भाजपा के पास उत्तराखण्ड में विकास के नाम पर गिनाने के लिए खुद का कुछ भी नहीं है और जो इक्का-दुक्का कार्य हुए भी हैं तो वो पिछली सरकार की योजनाओं को ही आगे खिसकाना मात्र ही है। विकास राज्य में खोजे नहीं मिल रहा है। यदि राजधानी देहरादून की ही बात की जाये तो त्रिवेन्द्र सरकार के अस्तित्व में आने के बाद एक पत्थर भी अपनी जगह से नहीं हिला विकास तो कोसो दूर की ही बात है।
राजधानी दून जहां पूरी सरकार और अफसरशाही विराजमान है वहां की सड़कों का हाल बद् से बद्तर हो चुका है। आलम ये है कि इन सड़कों में गहरे गड्ढ़े बन चुके हैं जिनमें गिरकर रोजाना कोई न कोई व्यक्ति चोटिल हो रहा है। यही नहीं कईं जानें भी इन खूनी सड़कों की भेंट चढ़ चुकी हैं किन्तु सरकार अभी भी नींद से नहीं जागी और दुर्घटनाओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर त्रिवेन्द्र सरकार को इन सड़कों को बनवाने से कौन रोक रहा है। आखिर क्यों लोक निर्माण विभाग के अधिकारी बजट न होने का रोना रो रहे हैं, क्या राज्य सरकार की तिजोरियां आम जनता के भले के लिए हमेशा बंद रहेंगी।
यदि आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में लगभग 70 फीसदी सड़कें ऐसी हैं जिनका निर्माण एनडी तिवारी सरकार के कार्यकाल के दौरान साल 2006-07 में हुआ था किन्तु लगभग 12 वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी दोबारा उन सड़कों की सुध किसी ने नहीं ली। ये सड़कें अब अपनी बदहाली का रोना रो रही हैं। हां कुछेक जगहों पर जरूर लोक निर्माण विभाग के कर्मठ अधिकारियों ने चलता पैचवर्क करवाया था, वो भी जनदबाव बढ़ने पर जो कुछ समय बाद ही उखड़ गया। लगभग एक वर्ष का समय व्यतीत हो जाने पर भी राज्य सरकार इन सड़कों को दुरूस्त करने को बजट नहीं जुटा सकी।
अब यदि राज्य की राजधानी का ही ये आलम है तो प्रदेश की अन्य दुरस्त जगहों की सूरतेहाल का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। एक किस्से की यदि बात करें तो हाल ही में दून में आये फिल्मी कलाकार जिम्मी शेरगिल से एक समाचार पत्र के संवाददाता ने पूछा कि ‘‘क्या राज्य में फिल्म सिटी का निर्माण होना चाहिए’’ तो अभिनेता ने तमाचा सा जड़ता हुआ उत्तर देते हुए कहा ‘‘पहले देहरादून की सड़कें तो बना लो, फिल्मसिटी तो बहुत दूर की बात है।’’
वाकई ये एक कड़वा लेकिन सच है कि बाहर से आये पर्यटकों और अतिथियों को हमारी हालत दिखती है किन्तु राज्य की सरकार को नहीं। प्रदेश की छवि विकास के लिहाज से पूरे देश और दुनिया में खराब होती जा रही है। कभी अपनी सुन्दरता और शांति के लिए विख्यात देहरादून को देश के सबसे प्रदूषित शहरों की सूचि में शूमार किया गया है। इससे बुरी खबर भला और क्या हो सकती है। नगर में जगह-जगह गंदगी का अंबार नजर आ रहा है। किन्तु भाजपा के मेयर मौन हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बद्तर, बिजली और पानी की सुविधाएं दयनीय हो चुकी हैं। वहीं दूसरी ओर उत्तराखण्ड की शांत वादियों में अब अपराध बढ़ चला है। राज्य अपराध के लिहाज से अपराधियों के लिए साफ्ट टारगेट बन चुका है। फलस्वरूप राज्य की जनता का जीना मुहाल हो गया है।
बस सवाल ये ही है कि राज्य की त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार आखिर कब काम करना शुरू करेगी, जिससे इन मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति हो सके और समस्याओं से निजात मिल सके। सीएम साहब महज फिल्मी शूटिंग के मुहुर्त में क्लैप दे देने से तो ये सब कार्य पूरे होने से रहे। आपको राज्य और जनता के हित के लिए एसी रूम से बाहर निकलकर जमीन पर उतरना होगा। तभी उत्तराखण्ड की जनता का कुछ भला होगा।