दिव्यलोक की अनुभूति कराता है कैंचीधाम
नैनीताल। हिमालय की गोद में रचा बसा उत्तराखंड वास्तव में दिव्यलोक की अनुभूति कराता है। यहां के कण-कण में देवताओं का वास है। पग-पग पर देवालयों की भरमार है, ऐसे में एक बार यहां भ्रमण को आने वाला पर्यटक दूसरी बार भी आने की चाहत रखे लौटता है। यहां की शांत वादियों में घूमने मात्र से सांसारिक मायाजाल में घिरे मानव की सारी कठिनाइयों का निदान हो जाता है।
उत्तराखंड के देवालयों में आने वाले सैलानियों की तादाद दिनों दिन बढती जा रही है। तीर्थाटन की दृष्टि से ऐसे मनोहारी स्थान राज्य के आर्थिक विकास में खासे उपयोगी हैं। हां, यह अलग बात है सरकारी उपेक्षा के चलते राज्य में अभी कई सुंदर स्थान ऐसे हैं, जो सरकार की आंखों से ओझल है, इस कारण कई पर्यटक स्थलों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे ही रमणीय स्थानों में बाबा नीम करोली महाराज का कैची धाम है। यह राज्य में पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, यहां पहुंचकर असीम सुकून मिलता है।
नैनीताल से 20 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा राजमार्ग पर हरी-भरी घाटियों के बीच बसे इस धाम में यूं तो पूरे साल सैलानियों का जमावड़ा रहता है, लेकिन 15 जून का यहां खास महत्व है। इस दिन यहां विशेष पूजा-पाठ के साथ भंडारा आयोजित किया जाता है। इसमें कुमाऊं के इलाकों के साथ साथ बाहरी पर्यटक भी पहुचते हैं। यहां बाबा नीम करोली की शरण में शीश नवाने के लिए भक्तों की भीड़ हजारों में उमड़ती है।
नीम करोलीबाबा की महिमा न्यारी है। भक्तजनों की माने तो बाबा की कृपा से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। यही कारण है कि बाबा के बनाए सारे मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। नीम करोली धाम को बनाने के संबंध में कई रोचक कथायें प्रचलित हैं। बताया जाता है कि 1962 में जब बाबा ने यहां की जमीन पर अपने कदम रखे तो जनमानस को हतप्रभ कर दिया। एक कथा के अनुसार माता सिद्धि और तुला राम के साथ बाबा किसी काम से रानीखेत से नैनीताल जा रहे थे, अचानक कैंची धाम के पास उतर गए।
इसी बीच उन्होंने तुलाराम को बताया कि श्यामलाल अच्छा आदमी था, तुलाराम को यह बात अच्छी नहीं लगी, क्योंकि श्यामलाल उनके समधी थे। भाषा में ज्येष्ठ के प्रयोग से वे बहुत बेरुखे हो गए और गंतव्य स्थान की और चल दिए। कुछ समय के बाद ही उन्हें जानकारी मिली कि उनके समधी का निधन हो गया। यह चमत्कार ही था कि बाबा ने पहले ही जान लिया कि उनके समधी का बुलावा आ गया है। एक दूसरी घटना के अनुसार 15 जून को आयोजित विशाल भंडारे के दौरान घी कम पड़ गया। बाबा के आदेश पर पास की नदी का पानी कनस्तरों में भर कर प्रसाद बनाया जाने लगा। प्रसाद में डालते ही पानी अपने आप आप घी में बदल गया। इस चमत्कार से भक्त जन नतमस्तक हो गए।
तभी से उनकी आस्था और विश्वास नीम करोली बाबा के प्रति बना है। नीम करोली बाबा का यह आश्रम आधुनिक जमाने का धाम है। यहां मुख्य तौर पर बजरंगबली की पूजा होती है। इस जगह का नाम कैची यहां सड़क पर दो बड़े जबरदस्त हेयरपिन बैंड (मोड़) के नाम पर पड़ा है। कैेची नैनीताल से 17 किमी दूर भुवाली से आगे अल्मोड़ा रोड पर है।