इस बार नवरात्रि में बन रहा ये दुर्लभ संयोग
देहरादून। शारदीय नवरात्र इस बार दस अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं। इस बार की नवरात्र में दो बृहस्पतिवार पड़ने से दुर्लभ संयोग बन रहा है। बृहस्पतिवार को सभी लोगों को लाभ मिलेगा। क्योंकि ग्रहों की स्थिति देखी जाए तो शुक्र का स्वग्र ही होना राजयोग है। नवरात्र के लिए सार्वजनिक दुर्गा पंडालों में तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। कहीं महल बनाया जा रहा है तो कहीं आधुनिकता की झलक दिखाई देगी। नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। देवी को प्रसन्न करने के लिए भक्त उपवास रख कर पूजा अर्चना करते हैं। ज्योतिष विद्या के जानकारों के अनुसार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह छह बजकर 15 मिनट से दस बजकर 11 मिनट तक रहेगा।
उन्होंने बताया कि सनातन परंपरा में अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को शारदीय नवरात्र शुरू होते हैं। इस बार नवरात्र दस अक्तूबर से शुरू हो रहे हैं, जिनका 19 अक्तूबर को दुर्गा नवमी पर समापन होगा। नवरात्र के नौ दिन इतने शुभ होते हैं कि इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए अधिकतर लोग वाहन, मकान, दुकान आदि इन्हीं दिनों खरीदते हैं। अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए प्रत्येक दिन विशेष नैवेद्य से मां दुर्गा को भोग लगाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नवरात्र का पहला दिन मां काली को समर्पित है। जिसके बाद महालक्ष्मी को और अंतिम तीन दिन मां सरस्वती को समर्पित है। माना जाता है कि नवरात्र का प्रारंभ भगवान श्रीराम ने किया था। भगवान राम ने लगातार नौ दिनों तक शक्ति की पूजा की थी, जिससे उन्हें लंका पर विजय मिली थी। यही वजह है कि शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्र को लेकर शहर के बाजार सजने लगे हैं। बुधवार से शुरू हो रहे नवरात्र के लिए सांझी, व्रत और पूजा की सामग्री से बाजार सज गए हैं। जिससे बाजार में चहल पहल दिखने लगी है। श्रद्धालु भी पर्व की तैयारी में जुट गए हैं। लोगों ने सांझी, पूजा और व्रत की सामग्री की खरीदारी शुरू कर दी है। सोमवार को पलटन बाजार के पीपल मंडी की दुकानों से लोगों ने पूजा सामग्री की खरीदारी की। पूजा सामग्री के विक्रेता राकेश देवेल ने बताया कि नवरात्र में होने वाली पूजा के लिए लोगों ने पूजा सामग्री की खरीदारी शुरू कर दी है।
बंगाली समाज के लोग दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाते हैं। षष्ठी को मां दुुर्गा की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसके साथ ही दुर्गा पूजा की शुरुआत होती है। इसी दिन माता के मुख का आवरण हटाया जाता है। अगली तिथि सप्तमी तिथि के दिन गणेश और रिद्धि-सिद्धि की विशेष पूजा की जाती है। दशमी तिथि के बाद माता की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।