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Uttarakhand News: बर्फविहीन हुआ मद्महेश्वर, तपिश बढ़ने से केदारनाथ में पिघल रही बर्फ

सूरज की तपिश बढ़ने से केदारनाथ व तुंगनाथ में तेजी से बर्फ पिघल रही है। घाटी क्षेत्रों में चैत्र में ही ज्येष्ठ माह की धूप महसूस हो रही है।

रुद्रप्रयाग। मौसम की बेरुखी से चैत्र मास में ही सूरज की तपन ज्येष्ठ महीने का एहसास कराने लगी है। उच्च हिमालय की तलहटी पर विराजमान द्वितीय केदार मद्महेश्वर एक सप्ताह में ही बर्फविहीन हो चुका है। यहां बुग्याली क्षेत्र वीरान नजर आ रहा है। वहीं, केदारनाथ और तुंगनाथ में बर्फ तेजी से पिघल रही है।

वहीं, मार्च महीने में जनपद में सामान्य से पांच फीसदी बारिश कम होने से जमीन की आर्दता प्रभावित हो रही है, जिससे प्राकृतिक जलस्रोतों में पानी का स्राव भी कम होने लगा है। मार्च माह के पहले तीन दिन तो मौसम खुशनुमा रहा और अच्छी बारिश भी हुई। इसके बाद दूसरे और तीसरे सप्ताह में हल्की बूंदाबांदी ही हुई।

यहां तक कि केदारनाथ धाम में बीते 15 दिनों से बर्फबारी नहीं हुई। यहां अब दो से ढाई फीट बर्फ रह गई है, जो तेजी से पिघल रही है। स्थिति यह है कि भैरवनाथ और दुग्ध गंगा की पहाड़ियों पर नम स्थानों पर ही बर्फ नजर आ रही है। चोराबाड़ी क्षेत्र में भी बर्फ के पिघलने की रफ्तार बढ़ रही है।

बुग्याली क्षेत्र बर्फविहीन

मौसम की बेरुखी का आलम यह है कि द्वितीय केदार मद्महेश्वर मंदिर सहित पूरा बुग्याली क्षेत्र बर्फविहीन हो चुका है। तुंगनाथ क्षेत्र में भी तेजी से बर्फ पिघल रही है। निचले इलाकों में चैत्र माह की तपन ज्येष्ठ माह का एहसास करा रही है। मौसम की इस बेरुखी का कारण बीते वर्ष बरसात के मौसम के बाद अभी तक सामान्य से कम बारिश का होना है।

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बीते वर्ष सितंबर से लेकर इस वर्ष मार्च तक जनपद रुद्रप्रयाग सहित पहाड़ के अन्य जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। इस वर्ष जनवरी में जनपद में सिर्फ 2.5 मिमी बारिश हुई थी। फरवरी में 108 मिमी बारिश की जरूरत थी, पर सिर्फ 23 मिमी ही हुई, जो सामान्य से 79 फीसदी कम थी। भले ही 27 फरवरी से 3 मार्च के बीच पूरे प्रदेश में 38.5 मिमी बारिश हुई थी और रुद्रप्रयाग में 41.2 मिमी बारिश हुई थी, जो सामान्य से 38 फीसदी अधिक थी। तब, जमीन को अच्छी नमी मिल गई थी। लेकिन बीते 20 दिनों से बारिश नहीं होने से हालात गंभीर हो रहे हैं।

प्रकृति और पर्यावरण पर पड़ रहा असर

मुख्य कृषि अधिकारी लोकेंद्र सिंह बिष्ट बताते हैं कि पिछले कुछ समय से बारिश का चक्र बदल रहा है, जिसका असर प्रकृति और पर्यावरण पर पड़ रहा है। फसलों के लिए बुवाई के बाद, फूल लगने के बाद और पकने के दौरान बारिश चाहिए, पर ऐसा नहीं हो रहा है। पर्यावरण के जानकार देव राघवेंद्र सिंह चौधरी बताते हैं कि मौसम चक्र में हो रहे बदलाव का असर दिखाई दे रहा है। शीतकाल में पर्याप्त बारिश व बर्फबारी नहीं होने से इस वर्ष मार्च के दूसरे सप्ताह से सूरज की तपन तेज होने लगी थी। इन दिनों ज्येष्ठ माह जैसी धूप लग रही है।

इनका कहना है..

शीतकाल में उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी और निचले इलाकों में बारिश नहीं होने से पृथ्वी को पर्याप्त नमी नहीं मिल पा रही है। फरवरी अंतिम सप्ताह से लेकर मार्च में जो बर्फबारी होती है, उसका ग्लेशियर को बहुत ज्यादा लाभ नहीं मिलता है और वह धूप लगते ही पिघल जाती है, जिससे हिमखंड भी प्रभावित होते है। बारिश नहीं होने से नदी, गाड-गदेरों में पानी का स्राव भी कम हो रहा है। मौसम में हो रहे इन बदलावों का असर प्रकृति, पर्यावरण के साथ मानव जीवन पर भी पड़ रहा है। – डा. बीरेंद्र प्रसाद उनियाल, प्रभारी सेंटर फॉर सस्टेनेबल इकोलॉजी एंड बायोडायविर्सिटी रिसर्च सेंटर घिमतोली, रुद्रप्रयाग

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